रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए
खुदा का चाँद भी फिर लाजबाव हो जाए
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तेरे गुलाबी होंठों पे जो गिर जाए शबनम
बा-खुदा शबनम खुद शराब हो जाए
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तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन
तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो जाए
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उम्र भर हाथों मैं लेकर पढता ही रहूँ
तेरा चेहरा गर कोई किताब हो जाए
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हुस्नवाले संवर सकती है शायरी मेरी
कभी हमराह मेरे जो तेरा शबाब हो जाए
-सचिन देव -
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हुस्न वाले संवर सकती है शायरी मेरी!
कभी हमराह जो मेरे तेरा शबाब हो जाए ! वाह वाह !
आदरणीय सचिन भाई , सुन्दर गज़ल के लिये बधाई !!
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