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दायरे.. ©

कुछ सवाल कुछ ज़वाबों के घेरे में , उलझा जीवनपथ..
सीमित दायरे , दरकता है जीवन उनमें पल-प्रतिपल..

दहकते दावानल, स्वप्नों का होता दोहन उनमें निरंतर..
पल-प्रतिपल , भसम् उठा ख्वाबों की भेंट चढा रहे हम..
चरणों में अर्पित करने लगे , सीमित दायरों भरा जीवन..
चरण उस पथिक के , जिन्हें सहेजा गया है हमारे लिए..
नाम भर का स्वप्न सा है पथिक , अनुभूत जिसे करना..
जैसे उल्लास से सुवासित जीवन , लेता विराम अचानक..

क्यूँ परवश बंधित है मानव मन , बंधन के नाम पर..?
क्यूँ बादल संग न उड़ता फिरता , बावरा ये मानव मन..?
रची-बसी चाहना , ह्रदय कोटर में वीतरागी पखेरू सम..
भरना चाहता हूँ कुलाँचें , उस हरिन सह जो मुक्तक सा है..
डाकिया आता है मेरे द्वार पर , हर दिन नयी कहानी संग..
क्यूँ नहीं कोई कहानी , है जो मुझसे शुरू या हो खतम..?

हर ख्वाब नातों की दहलीज से टकराकर होता चकनाचूर..
ज़बरन जगह बनाती नयी आदतें , बन जाती यहाँ संगी..
मस्तिष्क को दे स्वप्न-निवाला छोड़ जाये , वो आदत..
सालता है गम आदत का , कि चली ना जाये फिर कहीं..
शूल हैं भ्रम आशा भरे , पूरे होने पर यही देते है सुख..
मोडें मुख कैसे ? किसी भी पहलु से, उम्मीद भरा है जीवन..
जब कोई आस नहीं, दबे ढके क्या सच में कोई आस नहीं..?

सुगबुगाहट मस्तिष्क से , रहती निकलती है निरंतर..
संतुष्ट स्वयं को करने , खींच लेते हम कमजोर से दायरे..
रेशे से बनी वही बंदिशें , टूटने पर फंदे सा भान करातीं..
क्यूँ ना खुला छोड़ दें हम मन को , कि बनाने वाले ने..
बनाया है उसे ऐसा ही , स्वच्छंद खग सा गगन विचरता..
कौन होते हैं हम , बंदिशें के जाल उस पर लादने वाले..?

कर हसरतों को भूमिगत जिन्दा कहलाते हैं हम..
कर निर्मित नवीन गढ़ दायरों वाले चहुँ ओर हमारे..
दायरों ने कर रखा है गोल मकडजाल सा सोचों को भी..
बाँध दीना हमने सारा जीवन , बेफिजूल इन सींखचों में..

क्यूँ ना छोड़ दें उसे , मुक्त गगन में फडफडाता हुआ..?
नहीं छटपटाते रहो इन्हीं दायरों में, बेलगाम घोड़े की तरह..
और लग भी जाये कभी लगाम तो , अपने से परे हटकर..
जिए जाओ ताउम्र , और किसी के जीवन दर्शन पे चलकर...
बूढ़े होने तक सोचते फिरना क्या किया , हमने जीवन भर...
मिलेंगे ताले जड़े , दायरों की परिधि पर हर जगह...
कुछ छोटी बड़ी औलाद की खुशियों के आलावा... देखना...
क्या मेरा , क्या तुम्हारा... हश्र यहाँ , होना तो सबका यही है...

जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 03 जनवरी 2011 )

Photography by :- Jogendra Singh
In this Picture :- Me.. (Jogendra Singh)
(Photo clicked by the help of mirror)
_____________________________________________

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Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on January 9, 2011 at 4:57pm
नवीन भईया , पता नहीं आपने क्या देख लिया वरना मैंने तो जो मन में आया लिख दिया.......!!
मन की वास्तविक स्थिति को दिखाने का यत्न भर है..........!!

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