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चढा दी हसरतें सूली किसी ईनाम से पहले//
नमन है उन शहीदों को सदा आवाम से पहले//
बने आजाद परवाने कफ़न को सिर पे बांधा था
वतन पर जान देते थे किसी अंजाम से पहले //
भुला सकते न कुर्बानी वतन पर मर मिटे हैं जो
ज़माना सर झुकाएगा खुदा के नाम से पहले//
शहादत व्यर्थ उनकी यूँ नहीं अब तुम करा देना
नसीहत मानना उनकी किसी कुहराम से पहले//
वफ़ा कैसे निभानी सीखलो अपने वतन से तुम
सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले //
सनम जो देश को समझो तभी नजरे इनायत हो
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले //
.....................................
................मौलिक व अप्रकाशित...............
Comment
आदरणीय वीनस जी हार्दिक आभार
मैंने आवाम का प्रयोग दोनों तरह से देखा इस लिए लगा दिया वैसे मैंने अपनी मूल गजल में इसे संशोधित कर लिया है मार्गदर्शन करते रहें
आदरणीय ब्रिजेश जी ,आदरणीया महिमा श्री जी ,आदरणीया कुंती जी, आदरणीय गीत जी, आदरणीय सचिन जी सबकी तह दिल से आभारी हूँ
आदरणीय सुशील जी हार्दिक आभार
आदरणीय कपीश जी ,डॉ अनुराग जी ,अन्नपूर्णा जी हार्दिक आभारी हूँ
आदरणीया मीना पाठक जी ,गीता जी स्नेह बनाए रखें
आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक अभिनन्दन
जी अरुण के इंगित किए अशआर में बदलाव कर दिया है
आदरणीया सरिता जी.... एक - एक अल्फाज जेहन मैं बसने वाला लिखा आपने .... हार्दिक बधाई आपको आपकी इस अनुपम कृति के लिए !
भुला सकते न कुर्बानी वतन पर मर मिटे हैं जो
ज़माना सर झुकाएगा खुदा के नाम से पहले//......बहुत पसंदीदा शेर
बहुत सुंदर गजल , बधाई आदरणीया सरिता जी
वफ़ा कैसे निभानी सीखलो अपने वतन से तुम
सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले //............बहुत सुंदर विचार.
अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीया
हार्दिक बधाई
एक बात कहना है कि शब्द आवाम २२१ नहीं होता अवाम १२१ होता है इसे आपको बदलना होगा ....
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