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कुण्डलियाँ [मेरा परिचय]

कहते सब सरिता मुझे ,बढती हूँ निष्काम
जीवन के पथ हैं कठिन, चलते रहना काम
चलते रहना काम, नहीं रोके रुक पाती
शत्रु सामने देख , सहज दुर्गा बन जाती
मेरा शील स्वभाव , भाव हैं मुझमें बहते
मैं जीवन का स्रोत मुझे सब सरिता कहते //

....................................................

        मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sarita Bhatia on October 7, 2013 at 10:31am

डॉ अनुराग जी , अनुज संदीप हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on October 7, 2013 at 10:24am

आदरणीय अभिनव जी ,आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,आदरणीया मीना पाठक जी हार्दिक अभिनन्दन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 1:10am

परिचय देने के लिये  , सुंदर लिया प्रतीक

शब्द भाव अरु शिल्प में,कुण्डलिया है नीक ||

बधाइयाँ................

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 10:38pm

कुण्डलिया छंद में अपना परिचय बहुत ही सुन्दरता से दिया है सलीका पसंद आया बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2013 at 8:16pm

बहुत ही सुन्दर सलीके से परिचय दिया है आपने ............सादर बधाई हो

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 3:56pm

वाह नारी शक्ति का हर रूप समाया है आप में ! बहुत खूब रचना के माध्यम से खुद का परिचय काराया है ! बधाई स्वीकार करें !

Comment by Meena Pathak on October 6, 2013 at 3:16pm

वाह आ० सरिता जी गज़ब की कुण्डलियाँ | बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 3:13pm

वाह सरिता जी , सुन्दर कुंडलिया !!! आपका परिचय पा कर खुशी हुई !!! आपको बहुत बधाई !!!

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 2:23pm

वाह पसंद आया आपका परिचय हार्दिक शुभकामनायें आदरणीया सरिता जी !! सशक्त अंदाज़ !!!

Comment by Sarita Bhatia on October 6, 2013 at 2:14pm

आदरणीय सुशिल जी ह्रदय से आभारी हूँ 

कृपया ध्यान दे...

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