खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी
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चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ
पल भर तो ठहर जाना
नैनों की भाषा क्या है
कुछ गुनगुना सुना-ना
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*आईना जरा मै देखूँ
क्या मेरी छवि बसी है
कोमल-कठोर बोल तू
पलकें उठा , शरमा-ना
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आँखों मे आँखें डाले
मै मूर्ति बन गया हूँ
पारस पारस सी हे री !
तू जान डाल जा ना
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खिलता गुलाब तू है
कांटे भी तेरे संग हैं
बिन खौफ मै ‘भ्रमर’ हूँ
खिदमते-इश्क़ पेश आ ना
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खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी
मदमस्त है पवन भी
अल्हड नदी यूँ दामन-
को छेड़ती तो न जा
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*अम्बर कसीदाकारी
धरती पे छवि है न्यारी
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना-ना ..
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सपने सुहाने दे के
बिन रंगे चित्र ना जा
ले जादुई नजर री !
परियों सी उड़ के ना जा
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"मौलिक व अप्रकाशित"
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.
09.10.2013
10.15-11.00 P.M.
*संशोधित
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र सुरेन्द्र भाई , बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति हुई है , वाह !!!! बधाई !!!!
चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ
पल भर तो ठहर जाना
नैनों की भाषा क्या है
कुछ गुनगुना सुना-ना --------- वाह भाई , बहुत बधाई !!!
छोटे- छोटे टुकड़ों में सुंदर चित्रण की बधाई सुरेंद्र भ्रमरजी। कहीं तुकबंदी में कमी रह गई पर भाव अति सुंदर लगे ।
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