मेरे अल्लाह ! तू लड़की बनाना
मुझे आता नहीं, चोटी बनाना//१
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बनाना चाहता हूँ ‘आदमी’ को
बुरा है पर, ज़बरदस्ती बनाना//२
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मुझे इक 'माँ' लगे है, देख लूं जो
सनी मिट्टी लिए रोटी बनाना//३
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न डूबेगा समंदर में, लहू के
शिकारी सीख ले कश्ती बनाना//४
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चला वो, तीर-भाले को पजाने
सिखाया था जिसे बस्ती बनाना//५
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उजालों से मुहब्बत है, मुझे भी
सिखा दे माँ मुझे तख्ती बनाना//६
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जवां बेटी, न पैसे, और शादी
कहाँ मुम्किन तुझे छोटी बनाना//७
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न बेटे में, न बेटी में कमी है
कभी सिखला उसे हस्ती बनाना//८
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ख़ुदा को फ़िक्र तो ग़म 'नाथ' को भी
पड़ेगा फिर 'उसे' धरती बनाना//९
.
"मौलिक व अप्रकाशित"
वज्न : मिरे-12/अल्लाह-221/तू-2/लड़की-22/बनाना-122 [1222-1222-122]
Comment
आदरणीय राम नाथ भाई , बहुत अच्छी बातें कही है आपने !!!! क़ाफिया के मामले मे आदरणीय शकील भाई से सहमत हूँ !!! अभी आपका मतला बिना काफिये के है !!! अभी की स्थिति मे --टी' बनाना ---पूरा का पूरा रदीफ हो रहा है , काफिया नही है !!!!
!!!!!आदरणीय, गज़ल के प्रयास के लिये आपको बहुत बधाई !!!!
//अगर ....मेरे अल्लाह तू लड़की बनाना //मुझे आता नहीं चोटी बनाना //..किया जाए तो क्या यह पूरी ग़ज़ल दोषमुक्त हो पाएगी//
मेरे विचार से हो जानी चाहिए। अगर कहीं और कोई बारीकी हो तो नहीं कह सकता।
//यह ग़ज़ल मैंने जान-बुझकर यहाँ प्रेषित किया गया है..//
तो क्या आपने जान बुझ कर दोष युक्त ग़ज़ल पोस्ट की है ??
अगर ....मेरे अल्लाह तू लड़की बनाना //मुझे आता नहीं चोटी बनाना //..किया जाए तो क्या यह पूरी ग़ज़ल दोषमुक्त हो पाएगी...आप सभी महानुभावों की प्रतिक्रिया के इन्तेजार में.....नमन सहित
//सीखना है..कि...क्या-क्या दोष उत्पन्न हो जाता है..थोड़ी..फेर-बदल से.........//
और यह बेहद जरूरी भी है, क्योंकि इससे मंच का उद्देश्य भी सार्थक होगा। आभार।
आदरणीय रामनाथ शोधार्थी जी,
अगर आप मतले में सिर्फ 'ई' की मात्रा निभाएं तो मामला बन सकता है। खैर इस मामले पर किसी जानकार की भी राय जरूर लीजिएगा। सादर।
बहुत बहुत शुक्रिया अभिनव अरुण साहब, आशीष नैथानी 'सलिल' साहब...आपने बिलकुल बजा फरमाया है...यह ग़ज़ल मैंने जान-बुझकर यहाँ प्रेषित किया गया है..यह दो ग़ज़ल का सम्मिश्रण कह लें...तो ज्यादा उचित होगा....सीखना है..कि...क्या-क्या दोष उत्पन्न हो जाता है..थोड़ी..फेर-बदल से.........नमन आप सभी महानुभावों को.....!!!!!!!
जी...आपका कथन बिलकुल सही है शकील साहब....मतले के कारण यह दोष उत्पन्न हो रहा है...अल्पज्ञ तो हम सब है...हमेशा सीखते ही रहना है...संभव है..मतले को फेर-बदल कर इस दोष से बच पाऊंगा.....नमन सहित !!!!!..
भाई रामनाथ 'शोधार्थी' जी, शकील जमशेदपुरी जी की बात बिलकुल सही है | पहली बात तो 'बेटी' और 'छोटी' काफिये में नही लिए जा सकते | यहाँ पर 'सिनाद दोष' है |
सादर !!
दुरुस्त फरमाया आपने आदरणीय रामनाथ शोधार्थी जी। गजल शिल्प में बहुत ज्यादा अल्पज्ञ हूं। इस मंच पर वरिष्ठों की तरबियत में सीख रहा हूं।
आपके जवाब से मेरी शंका का समाधान नहीं हुआ है।
मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि पट्टी, मिट्टी, राखी, हड्डी, मक्खी, पगड़ी, गठरी आदि को काफिये में बांधा जा सकता है, क्योंकि इनमें 'ई' की मात्रा को निभाया गया है। पर अगर हम मतले में पट्टी और मिट्टी ले लें तो क्या आगे के शेअर में राखी, हड्डी, मक्खी, पगड़ी, गठरी आदि ले सकते है? मतले के अनुसार क्या हमें 'ट' व्यंजन को निभाना लाजिमी नहीं हो जाएगा?
समाधान करें। सादर।
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