For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (४) : बताओ माँ, मेरी चादर कहाँ है !

कहाँ है कील, शर, नश्तर कहाँ है

मेरा काँटों भरा, बिस्तर कहाँ है//१

.

उठा के मार, मंदिर में पड़ा ‘वो’  

भला क्या पूछना, पत्थर कहाँ है//२

.

तभी सोंचू के, मैं क्यूँ उड़ रहा हूँ

अमीरों क़र्ज़ का, गट्ठर कहाँ है//३

.

लगे मय पी रहा है, आज वो भी

जहर पीता था, वो शंकर कहाँ है//४

.

बुराई झाँकती है, देख दिल से

छुपा उसको, तेरा अस्तर कहाँ है//५

.

सपोलें मारने से, कुछ न होगा 

चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ है//६

.

न तुम ढूंढो उसे, दैरो-हरम में 

कहोगे फिर, ख़ुदा घर पर कहाँ है//७ 

.

कुहासा बढ़ रहा है, फिर गली में

बताओ माँ, मेरी चादर कहाँ है//८

.

क़लम है ‘नाथ’ माँ है रौशनाई

कभी ढूँढा नहीं, दिलबर कहाँ है//९

.

"मौलिक व अप्रकाशित"

वज्न : कहाँ-12/है-2/कील-21/शर-2/नश्तर-22/कहाँ-12/है-2 [1222-1222-122]

Views: 1014

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 18, 2013 at 2:23pm

बहुत बहुत शुक्रिया coontee mukerji जी तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ...आपका.....नमन 

Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 1:12pm

कुहासा बढ़ रहा है, फिर गली में

बताओ माँ, मेरी चादर कहाँ है/......बहुत ही मार्मिक है.

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 18, 2013 at 12:18am

ज़नाब केसरी साहब...कुछ शे'र है...अच्छी लगे तो जरूर इत्तेला कीजियेगा...बुरी भी लगे तो...

निहत्था हूँ नहीं डर है के सच भी   

किसी हथियार से कमतर कहाँ है

........................................

जहाँ था दर्दे-दिल आबाद मेरा   

मेरे ज़ख्मों का वो खंडहर कहाँ है

..........................................

न जाड़े का न गर्मी का न लू का

ग़रीबी के बदन को डर कहाँ है

..........................................

हुए आज़ाद पर कुछ भी न बदला    

दिखाओ तुम नया मंजर कहाँ है 

...........................................

सही होने से इसे ग़ज़ल में पिरो दूंगा...नहीं तो पुनः प्रयास करूँगा....हार्दिक आभार.....!!!!!!!!

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 18, 2013 at 12:16am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहब...आप महानुभावों की प्रतिक्रिया का हमेशा इंतज़ार रहता है..ताकि..कुछ सीख सकूं...बहुत फलदायी होता है मेरे लिए....चरण वंदन.....!!!..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 18, 2013 at 12:12am

उठा के मार, मंदिर में पड़ा ‘वो’  
भला क्या पूछना, पत्थर कहाँ है

सपोलें मारने से, कुछ न होगा
चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ है

कुहासा बढ़ रहा है, फिर गली में
बताओ माँ, मेरी चादर कहाँ है

इन तीन अश’आर के लिए दिली दाद कुबूल कीजिये, शोधार्थी साहब. मुझे आपका प्रयास संयत लगा.

शुभेच्छाएँ

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 17, 2013 at 10:53pm

पुन: आभार ज़नाब केसरी साहब...कोशिश करूँगा...जो अश'आर आपने चिन्हित किये है..उसको संशोधित कर पेश कर पाऊँ....कोशिश तो कर ही सकता हूँ...आप लोगों के स्नेह के लिए ऋणी हूँ........आभार...!!!!

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 17, 2013 at 10:33pm

बहुत बहुत शुक्रिया ज़नाब वीनस केसरी साहब....अभी सीख रहा हूँ...कोशिश रहेगी...ख़ुद के साथ-साथ आप जैसे महानुभावों को भी शे'र पसंद आये....हार्दिक नमन इस शुभेच्छा हेतु......सादर नमन !!!!!!  

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 9:53pm

भाई क्या काफिया पैमाईश ही ग़ज़ल कहने का उद्देश्य है ...
अपना जो स्तर बना लिया हिया उसे बरकरार रखना भी आपकी जिम्मेदारी है
ये आपकी एक निहायत घटिया ग़ज़ल है जिसमें आपने सारे के सारे शेर भर्ती के हैं ...
इन अशआर में ग़ज़लियत का नमो निशाँ नहीं है

तभी सोंचू के, मैं क्यूँ उड़ रहा हूँ

अमीरों क़र्ज़ का, गट्ठर कहाँ है//३

.

लगे मय पी रहा है, आज वो भी

जहर पीता था, वो शंकर कहाँ है//४

.

बुराई झाँकती है, देख दिल से

छुपा उसको, तेरा अस्तर कहाँ है//५

.

सपोलें मारने से, कुछ न होगा 

चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ है//६

.

इस रचना को ग़ज़ल कहना ही गलत है ...  सब कुछ पोस्ट कर देने के लोभ से बाहर निकलिए .... एक बार आप पर हलकेपन का दाग लग गया तो वो जाते जाते जाएगा  

कुछ अधिक कह गया,, आशा करता हूँ आप इसे मेरा आप पर अधिकार समझ कर स्वीकार करेंगे
सादर

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 6:33pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल भाई जी! आपको बहुत बहुत बधाई!

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 17, 2013 at 4:38pm

बहुत बहुत शुक्रिया ज़नाब शकूर साहब, आ. अभिनव अरुण जी, परम आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, भाई निलेश जी, श्री केवल प्रसाद जी, श्रीमान सुशील जोशी जी, श्री मोहन बेगोवाल साहब, आ. श्री अरुण कुमार निगम साहब, आदरणीया सरिता भाटिया जी...तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ..आप सभी महानुभावों के इस निश्छल स्नेहाशीष के लिए.....पुनश्च: नमन....!!!

महानुभावों से दिली गुजारिश है...अच्छा है तो मेरे लिए भी ख़ुशनसीबी है...लेकिन ख़ामियों की तरफ भी अगर इशारा हो तो ग़ज़ल और खूबसूरत बन जाए....नमन सहित......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service