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बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती//१
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चलो माना, के जीने के लिए, खुशियाँ जरूरी है
जरा भी ग़म न हो, ऐसी ख़ुशी, अच्छी नहीं होती//२
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भले ही, आह उट्ठे है !!, दिलों से, वाह उट्ठे है !!
मगर सुन, आँख की, बेपर्दगी अच्छी नहीं होती//३
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तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी…
Posted on October 19, 2013 at 12:19pm — 38 Comments
करूं मै क्या? मेरी आवारगी बेचैन करती है
बनूँ गर रहनुमा तो, रहबरी बेचैन करती है//१
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समंदर से सटा है घर, मगर लब ख़ुश्क है मेरा
तेरी जो याद आये, तिश्नगी बेचैन करती है//२
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के अच्छी मौत है, इक बार ही जमकर सताती है
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है//३
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मुहब्बत है मुझे भी, चाँदनी की नूर से लेकिन
निगाहे-हुस्न तेरी, रौशनी बेचैन करती…
Posted on October 18, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
फ़िदा है रूह उसी पर, जो अजनबी सी है
वो अनसुनी सी ज़बाँ, बात अनकही सी है//१
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धनक है, अब्र है, बादे-सबा की ख़ुशबू है
वो बेनज़ीर निहाँ, अधखिली कली सी है//२
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कभी कुर्आन की वो, पाक़ आयतें जैसी
लगे अजाँ, कभी मंदिर की आरती सी है//३
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ख़फ़ा जो हो तो, लगे चाँदनी भी मद्धम है
ख़ुदा का नूर है, जन्नत की रौशनी सी है//४
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वो…
Posted on October 16, 2013 at 5:00pm — 20 Comments
कहाँ है कील, शर, नश्तर कहाँ है
मेरा काँटों भरा, बिस्तर कहाँ है//१
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उठा के मार, मंदिर में पड़ा ‘वो’
भला क्या पूछना, पत्थर कहाँ है//२
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तभी सोंचू के, मैं क्यूँ उड़ रहा हूँ
अमीरों क़र्ज़ का, गट्ठर कहाँ है//३
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लगे मय पी रहा है, आज वो भी
जहर पीता था, वो शंकर कहाँ है//४
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बुराई झाँकती है, देख दिल से
छुपा उसको, तेरा अस्तर कहाँ है//५
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सपोलें मारने से, कुछ न होगा
चलो खोजें छिपा, अजगर कहाँ…
ContinuePosted on October 16, 2013 at 4:30pm — 19 Comments
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें !