करूं मै क्या? मेरी आवारगी बेचैन करती है
बनूँ गर रहनुमा तो, रहबरी बेचैन करती है//१
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समंदर से सटा है घर, मगर लब ख़ुश्क है मेरा
तेरी जो याद आये, तिश्नगी बेचैन करती है//२
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के अच्छी मौत है, इक बार ही जमकर सताती है
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है//३
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मुहब्बत है मुझे भी, चाँदनी की नूर से लेकिन
निगाहे-हुस्न तेरी, रौशनी बेचैन करती है//४
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नशा तेरी मुहब्बत का, हमेशा साथ रहता है
मगर फिर भी मुझे क्यूँ, मयकशी बेचैन करती है//५
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ख़ुदा क्या है? कहाँ खोजूं जो है मतलब तलाशो तुम
मुझे तो बस, ग़ज़ल की बंदगी बेचैन करती है//६
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ग़रीबी देखकर, तुम तो, फ़कत हैरान होते हो
ग़रीबों की मुझे बेचारगी बेचैन करती है//७
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करो कुछ भी, जो जी चाहे, इसे बस मशवरा समझो
गलत कुछ हो तो 'माँ' की नाख़ुशी बेचैन करती है//८
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सुनो ऐ ‘नाथ’ घर की खिड़कियाँ दर बंद कर सोना
मिले ठंडी हवा तो, आशिक़ी बेचैन करती है//९
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"मौलिक व अप्रकाशित"
वज्न : करूं-12/मै-2/क्या-2/मेरी-12/आवारगी-2212/बेचैन-221/करती-22/है-2 [1222-1222-1222-1222]
Comment
सुनो ऐ ‘नाथ’ घर की खिड़कियाँ दर बंद कर सोना
मिले ठंडी हवा तो, आशिक़ी बेचैन करती है//... बहुत खूब आ0 रामनाथ भाई....
Hardik Aabhar Kesari Sahab...Shakil Sahab...Naman...!!!
Ji...Aapne Bilkul Durust Farmaaya Hai..Koshish Karunga..Use Door Karne Ki......Punasch: Aabhar...//
.शे'र ५ को....इस तरह अगर लिखूं...तो कैसा रहेगा.....//.......
नशा तेरी मुहब्बत का, हमेशा साथ है दिलबर
शेअर को ऐसा कर देने पर तकाबुले रदीफ का दोष खत्म हो जाएगा।
शे'र संख्या ३ को .........के अच्छी मौत है, इक रोज़ ही जमकर सताये है
ऐसा करने पर तकाबुले रदीफ बरकरार रहेगा। क्योंकि इस बदलाव से शेअर ऐसा होगा:
के अच्छी मौत है, इक रोज़ ही जमकर सताये है
मुझे दिन-रात, अब ये ज़िंदगी बेचैन करती है
अब अगर इस शेअर को स्वतंत्र रूप से पढ़ा जाए तो ये भ्रम पैदा होता है कि इस शेअर में है रदीफ है और शायर से काफियाबंदी में गलती हो गई है। यानी शेअर दोषयुक्त है।
एक बार फिर से आपकी ग़ज़ल के कई अशआर मुत्तासिर कर गए कुछ ने देर तक अपने पास रोके रखा ...
कुछ ने अपने अर्थ में उलझा लिया
निगाहे-हुस्न -- इस इजाफत से क्या अर्थ निकला जाए ?
"हुस्न की निगाह" इसका क्या अर्थ है
ग़ज़ल की बंदगी बेचैन करती है.... ग़ज़ल की बंदगी सुकून देती है या बेचैन करती है ... शब्द संयोजन बदलिए
करो कुछ भी, जो जी चाहे, इसे बस मशवरा समझो
गलत कुछ हो तो 'माँ' की नाख़ुशी बेचैन करती है ............ ये तो आपने सूचना दे दी ... मशविरा कहाँ है ? शब्द संयोजन बदलिए !!!
आदरणीय शकील साहब...शे'र ५ को....इस तरह अगर लिखूं...तो कैसा रहेगा.....//.......
नशा तेरी मुहब्बत का, हमेशा साथ है दिलबर
शे'र संख्या ३ को .........के अच्छी मौत है, इक रोज़ ही जमकर सताये है ......आपका आभारी....
हार्दिक नमन आदरणीय संदीप पटेल साहब.........जी आपके कथन पर अमल करूँगा.....//....बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल को सराहने हेतु.........//
वाह वाह आदरणीय बहुत खूब अभी आपकी एक ग़ज़ल पढ़ के आया हूँ
और यह ग़ज़ल भी शानदार हुई है बधाई हो
अग्रजों के कहे पर अवश्य काम कीजिये
जी...तकाबुले रदीफ़ का चक्कर दुबारा आ गया..हालाँकि मैं संयत था..लेकिन शुक्रिया..शकील साहब..का...पुनश्च: आभार !!!!!..नमन
नमन आ. सौरभ पाण्डेय साहब...चरण वंदन..!! आप मेरे अभिभावक हैं..मुझे सब स्वीकार है...जितना-डांटना हो..फटकारना हो..बोल दीजिये..शायद इसी स्नेह की बदौलत सीख रहा हूँ...स्नेह बनाये रखें....पुनश्च: नमन !!!!!
शकील साहब .. आप द्वारा सुझाया गया दोष तकाबुले रदीफ़ का दोष कहलाता है.
इसे साझा कर आपने जागरुक विद्यार्थी होनी का संयत उदाहरण दिया है.
शुभेच्छाएँ.. हार्दिक शुभकामनाएँ.
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