बहुत ज्यादा भी हो, पाकीज़गी, अच्छी नहीं होती
न करना यार मेरे, ख़ुदकुशी, अच्छी नहीं होती//१
.
चलो माना, के जीने के लिए, खुशियाँ जरूरी है
जरा भी ग़म न हो, ऐसी ख़ुशी, अच्छी नहीं होती//२
.
भले ही, आह उट्ठे है !!, दिलों से, वाह उट्ठे है !!
मगर सुन, आँख की, बेपर्दगी अच्छी नहीं होती//३
.
तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी नहीं होती//४
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नसों को चीर कर, ग़म की जड़े भी, फैल जाती हैं
बहुत ग़मगीन हो, तो ज़िंदगी, अच्छी नहीं होती//५
.
उजाले की तरह, जो लोग हैं, बचके जरा मिलना
नज़र अंधी करे, वो रौशनी, अच्छी नहीं होती//६
.
वही पहनो, वही ओढ़ो, तेरे ज़ेहन, को जो भाये
दिखावा बन चले, जब सादगी, अच्छी नहीं होती//७
.
तड़प कितनी, हरारत क्या, जरूरी है, समझ लेना
बराबर गर नहीं, वो आशिक़ी, अच्छी नहीं होती//८
.
गज़लगोई नई है, ‘नाथ’ ना सर, को क़लम कर दे
नये हथियार से, बाज़ीगरी, अच्छी नहीं होती//९
.
"मौलिक व अप्रकाशित"
वज्न : बहुत-12/ज्यादा-22/भी-1/हो-2/पाकीज़गी-2212/अच्छी-22/नहीं-12/होती-22 [1222-1222-1222-1222]
Comment
सुंदर अशआरों से सुसज्जित इस प्रस्तुति हेतु बधाई हो आ0 रामनाथ भाई...
बढ़िया गज़ल पर बधाई स्वीकारें!
बहुत अच्छी ग़ज़ल है! आपको हार्दिक बधाई! बाकी सुधी जनों ने कह ही दिया है.
एक निवेदन है कि किसी भी मंच पर जहाँ हम अपनी रचना पोस्ट करते हैं, वहां अन्य सदस्यों की रचनाओं को पढ़ना और उन पर टिपण्णी करना भी जरूरी होता है.
सादर!
आदरणीय भाई जी इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको
सभी अशर बढ़िया बन पड़े है , बहुत बधाई आपको आ0 रामनाथ जी ।
Aadarniy Kesari Sahab, Bhai Nilesh Ji Hardik Aabhar..Is Sneh Ke Liye....Maine Picchle Comment Me Tajriba Ko 212 Hi Lekar Misre Ko Change Kiya Hai...Gaur Farmayen..Aur Jehn Ko Bhi..Usi Tarah..
Maza Hai Tajribe Ka Bhi Mere Yaro Muhabbat Me....
Wahi Pahno Wahi Odho Jo Tere Jehn Ko Bhaye...//
Maine Taasir Ko Hata Diya Hai..Kesari Sahab..Hardik Abhinandan..Is Sujhav Hetu....Punasch: Naman
आदरणीय रामनाथ जी,
बहुत उम्दा ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाई.... बहुत रोचक चर्चा हो रही है .... तज़ुर्बा के गड्डे में मै भी गिरा था लेकिन आदरणीय वीनस जी ने हाथ दे कर बाहर खींच लिया .... आपने जो जावेद अख्तर साहब का शेर दिया है उसकी तक्तीअ करनें की कोशिश की है ,,,, तज़ुर्बा और तज्रिबा ... दोनों सूरतों में ... गौर फरमाएं .
.
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
२ १ २ २ १ २ १ २ २ २
कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा
२ १ २ २ १ १ २ २ २ २
बेबह्र हो रहा है ....
........................................
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
२ १ २ २ १ २ १ २ २ २
कुछ न होगा तो तज्रिबा होगा
२ १ २ २ १ २ १ २ २ २
अब ठीक है न?... रचते रहिये ....
अच्छी ग़ज़ल पर अच्छी बहस (चर्चा) चल रही है ....दोनों के लिए बधाई
दो बातों की ओर आप लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ
वही पहनो, वही ओढ़ो, तेरे ज़ेहन, को जो भाये
में ज़ेहन को २२ नहीं किया जा सकता है ये हमेशा जेह्न अनुसार २१ ही होगा
तजुर्बे का, अलग तासीर है, यारों मुहब्बत में
हमेशा इश्क़ में, हो ताज़गी, अच्छी नहीं होती//४
में तजुर्बा १२२ नहीं होता बल्कि तज्रिबा २१२ होता है ,,, और तज्रिबे का तासीर गलत है इसे तज्रिबे की तासीर लिखना चाहिए
और इस शेर में जम का पहलू भी आ जा रहा है ...
आपका सुझाव ...बहुत ही लाभदायक रहेगा....आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहब....नमन इस स्नेहाशीष हेतु...मैं समझ गया...हार्दिक धन्यवाद आपका.........चरण वंदन !!!!!!
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