दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये
बस जरा सा सनम मुस्कुरा दीजिये /१
लूट ले जायेगा कोई रहजन सनम
आप दिल को हमीं में छुपा दीजिये /२
आखरी साँस भी ले गया डाकिया
पढ़! उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये /३
नींद को ठंड लग जाएगी ऐ खुदा
लीजिये जिस्म मेरा उढ़ा दीजिये /४
लग रहा है थका वक़्त भी घूमकर
पांव उसके दबाकर सुला दीजिये /५
दर्द है , ज़ख्म है लाइए इश्क़ को
इक नया आदमी फिर बना दीजिये /६
शोर है भीड़ है, यूँ जनाज़े के दिन
‘सारथी’ इक ग़ज़ल तो सुना दीजिये/७
.....................................................
वज्न: २१२ २१२ २१२ २१२
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वीनस केसरी साहब ... ह्रदय गद गद हो गया आपका आशीष पाकर !...बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ आपका ... सादर नमन सहित !
क्या कहने भाई बहुत खूब
जनाब Nilesh Shevgaonkar साहिब ... नवाजिश ...करम ... मेहरबानी ! पहली बार आपका आशीष मिल रहा है ...हार्दिक ख़ुशी हो रही है ! आपके स्नेहिल शब्दों का मैं ऋणी हूँ !..बहुत बहुत आभार ! सादर नमन स्वीकार करें :)
आदरणीय VISHAAL CHARCHCHIT जी ...हार्दिक धन्यवाद आपका ! सीखने के क्रम में हूँ ...आपने मेरे मिहनत को सराहा है ..बहुत बहुत आभारी हूँ ...आभार मित्र !..नमन सहित :)
वाह वा ....
आखरी साँस भी ले गया डाकिया
पढ़! उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये/२.... रोंगटे खड़े हो गए इस शेर को पढ़कर ... बहुत कुछ छुपा कर बहुत कुछ कह गए आप ... बधाई
///नींद को ठंड लग जाएगी ऐ खुदा
लीजिये जिस्म मेरा उढ़ा दीजिये////
वाह - वाह......बहुत ही प्यारी गजल हुई है भाई !!!!
मान्यवर Saurabh Pandey जी , सर्वप्रथम सादर नमन ! आपने अपना कीमती समय दिया है नाचीज की ग़ज़ल पर ...बहुत मेहरबानी ! मोहतरम के सुझाव भी हमारे लिए आदेश ही हैं और मैं पूर्णतः सहमत हूँ आपसे ! वास्तविकता तो ये है कि जब रचनायें इस पारखी मंच पर आती हैं तो अपनी कमियों का पता चलता है! उसको मांजने का निखारने का दुबारा अवसर मिल जाता है ...!!! आदरणीय, प्रयासरत हूँ ....कि अपने जीवन में कम से कम एक दो ग़ज़ल पढ़ने/सुनने लायक लिख सकूँ !. सिखलाते रहेंगे, आशीष देते रहेंगे ..ऐसी आशा करता हूँ ! सादर- सारथी :)
जनाब Shijju Shakoor साहिब ...और आदरणीय ram shiromani pathak जी ....बहुत मेहरबानी आपकी ! आपकी सराहना से हमेशा प्रेरणा मिलती है ! साथ बने रहिएगा !...सादर नमन सहित :)
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ...ह्रदय तल से कोटिशः आभार ! आपने ग़ज़ल की सराहना की ...चंद अशआर को अंकित भी किया आपने ...कृतज्ञता प्रकट करता हूँ !..बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! नमन स्वीकार करें :)
बढिया कोशिश के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय बैद्यनाथ सारथी जी.
मतला को मेरी समझ से थॊड़ा और समय देना था.
डाकिया वाले शेर पर मेरा भी यही कहना है कि वो थोड़ा अस्पष्ट है. आदरणीय सुशील भाई का कहना सही है. यदि डाकिया शब्द के प्रति आग्रह न बन गया हो तो उसे बेहतर किया जा सकता है,
जैसे ..
आखरी साँस भी खत में भेजा सनम
पढ़ उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये.. . .. या, ऐसा ही कुछ.
यही कुछ इस शेर के साथ भी है -
लग रहा है थका वक़्त भी घूमकर
पांव उसके दबाकर सुला दीजिये.. ... इस शेर में घूम कर बेमतलब टहलने आदि का अर्थ ले रहा है लेकिन घूमना यानि turn around भी दिमाग़ में आ रहा है. बन सके तो इसे भी देख लें.
ये मेरे सुझाव कोई आरोपण न होकर मात्र भाव साझेदारी है. कृपया अन्यथा न लें
शुभ-शुभ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online