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ग़ज़ल- सारथी || तमन्ना जाग उठती है ||

तमन्ना जाग उठती है , तेरे कूचे में आने से

तेरे चिलमन हटाने से जरा सा मुस्कुराने से/१ 

अजब ही दौर था जालिम ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी

मेरी पलकें उठाने से तेरी पलकें झुकाने से/२ 

कहीं जाओ मगर अच्छे मकां मिलते कहाँ हैं अब

हमारे दिल में आ जाओ, ये बेहतर हर ठिकाने से/३ 

पतंगों सा गिरा कटकर तेरी छत पर अरे क़ातिल

कि बाहों उठाले तू किसी तरह बहाने से/४ 

हमारे नाम से साकी सभी को मय पिला देना

सितारे रतजगा के हैं थके हारे जमाने से/५ 

परेशां हो पशेमां हो यही पूछे जवाबी ख़त

लिखावट क्यूँ नहीं जाती तेरे ख़त को जलाने से/६ 

लुटा शुहरत गवां दौलत मजे में सारथी देखो

अमीरी है फ़कीरों सी घटेगा क्या लुटाने से/७ 

..........................................................

वज्न: १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on November 15, 2013 at 10:11pm

जनाब  Shijju Shakoor साहिब ...तहे-दिल से शुक्रिया अदा कर रहा हूँ !...बहुत बहुत आभार इस स्नेह के लिए !..नमन :) 

Comment by Saarthi Baidyanath on November 15, 2013 at 10:10pm

आदरणीय बहुत दिनों बाद मंच पर आ सका ! आप सभी महानुभावों को प्रथमतया प्रणाम करता हूँ !...

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 15, 2013 at 9:58pm

वाह! वाह ! वाह! क्या बात है हर शेर दिल में उतरा जाता है एक से एक उम्दा शेर है ! 

जवाबी ख़त सवाली बन, हमें पूछे परेशां हों   

लिखावट क्यूँ नहीं जाती, तेरे ख़त को जलाने से/६ 

.छा गए हो सार्थ भाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 15, 2013 at 9:40pm

आदरणीय बैद्य नाथ भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , आपको कोटिशः बधाई !!!

अजब ही दौर था ज़ालिम, ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी

तेरी पलकें उठाने से, तेरी पलकें झुकाने से - !!!! इस शेर के लिये आपको ढेरों दाद !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 15, 2013 at 6:52pm

/अजब ही दौर था ज़ालिम, ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी

तेरी पलकें उठाने से, तेरी पलकें झुकाने से/  वाह क्या बात है भाई सारथी जी दिली दाद कुबूल करें

.

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