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देख रहा हूँ सपना क्या है?
सपना है तो अपना क्या है ?
घिरा हुआ अविरल घेरे में ,
कैसे जानू क्या तेरे में ?


बंधन चक्कर जब अजेय है,
निस वासर ये तपना क्या है?
देख रहा हूँ सपना क्या है.
सपना है तो अपना क्या है?

राजा था क्यों रंक हो गया ?
ज्ञानी था तो कहों खो गया ?
पता नहीं ,जब कोई किसी का,
नाम लिए और जपना क्या है?

देख रहा हूँ सपना क्या है.................
पाना खोना, खोना पाना,
क्या कैसा है ,किसने जाना ?

सब कुछ है और कुछ भी नहीं है ,
ऐसे में ये कल्पना क्या है ?
देख रहा हूँ सपना क्या है.........

क्या जानू की सत्य कौन है ?
समझ न पाऊँ दिष्टि मौन है .
शांति चित्त बन जाये जिस छन ,
अति आनंद बरसना क्या है ?
देख रहा हूँ ...................

यह भी मैं और वह भी मैं हूँ,
जड़ भी मैं और चेतन मैं हूँ .
समय चक्र का फंदा सारा,
सृस्ती जगत भरमाना क्या है ?

देख रहा हूँ सपना क्या है,
सपना है तो अपना क्या है................

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Comment

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on January 24, 2011 at 5:35pm
bahut hi achhi rachna
Comment by Raju on January 20, 2011 at 10:49pm
bahut hi badhiya kavita aapne prastut kiya ........ sadar dhanywaad

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