क्षणिकाएँ
आज़ादी का जश्न मना लेने भर से,
देश भक्तों की पहचान नही होती है ,
सिर उठाने की अगर कोशिश भी करे कोई तो ,
रूह कांप जाये ,ये वीर सपूतों की शान होती है.
उपजाऊ भूमी भी बंजर बन जाती है
बुद्दी जब दिल से कुट्टी कर लेती है ,
विकास की दौड़ में हम आगे बढ़ते गए ,
तिजोरी बड़ी से बड़ी और,
दिल छोटे से छोटे होते गए
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सादर आभार
सुन्दर क्षणिकायें , आदरणीय आपको बधाई !!!!!
sundr prastuti
सुंदर रचना बधाई ।
अच्छी है!
विकास की दौड़ में हम आगे बढ़ते गए ,
तिजोरी बड़ी से बड़ी और,
दिल छोटे से छोटे होते गए.................बहुत सुंदर बात कही आपने डॉ मित्त्ल जी. साधुवाद.
सादर
कुंती
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