शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मंगलाचरण कॆ कुछ छन्द
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शिल्प विधान = सात भगण + दॊ गुरु वर्णॊं सहित प्रत्यॆक चरण मॆं कुल २३ वर्ण,,,,,,,,,
मत्तगयंद सवैया छन्द (१)
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पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!
सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!
रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!
हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, मॊरि मती बउराइ रही है !!
मत्तगयंद सवैया छन्द (२)
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मैं मतिमंद विवॆक नहीं कछु, सत्य कहौं तुम लॆहु निभाई !!
तज्ञ नहीं रस ढंग नहीं कस, भाँषि सकौं कविता निपुणाई !!
पिङ्गल कॆ कछु सूत्र न जानउँ, ऊँच पहारि चढ़ै कस राई !!
छन्द प्रबन्ध तभी रचता कवि, कन्ठ बसॆ जब शारद माई !!
मत्तगयंद सवैया छन्द (३)
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अम्ब सुनॊ जगदम्ब सुनॊ अब,बालक द्वार खड़ा गुहरावै !!
चाँउर कुंकुम लै चुनरी पट, वॆद- विधान लिखॆ गुण गावै !!
मातु भरी ममता हिय मॆं इक,बूँद झरै मम प्यास बुझावै !!
ब्यास-भुसुण्डि कहैं ऋषि नारद,तॊरि निहॊर सदासुख पावै !!
कवि-"राज बुन्दॆली"
०२/०१/२०१४
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना बहुत 2 बधाई आदरणीय .... |
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