ग़ज़ल :- डूब रहे से नाव की बातें
डूब रहे से नाव की बातें ,
थोथी है बदलाव की बातें |
राजनीति के दुर्दिन आये ,
सब करते अलगाव की बातें |
आईनों की हाट ग़ज़ब है ,
अन्धों के मुंह भाव की बातें |
भूल गये मन और पसेरी ,
महँगाई में पाव की बातें |
जाति धर्म सब वोट के मुद्दे ,
खत्म करो ये घाव की बातें |
भत्ता पेंशन और विद्याधन ,
छोड़ो मनबहलाव की बातें |
गली गली में मिलते कट्टे ,
बच्चे करते ताव की बातें |
गीत एकता के हम गायें ,
बहुत हुई बिखराव की बातें |
Comment
आदरणीया वंदना जी ,श्री बागी जी गज़ल को सराहा आपने, आभारी हूँ |
वाह वाह अरुण जी , क्या कहे इस ग़ज़ल पर , बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल भाई , कुछ शे'र तो ऐसे है जो सीधे कलेजे मे उतरते है ....
गली गली में मिलते कट्टे ,
बच्चे करते ताव की बातें
दाद स्वीकार कीजिये भाई , बधाई आपको |
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