For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर

ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर

 

कुछ था ज़रूर खास बनारस के घाट पर ,

धुंधला दिखा लिबास बनारस के घाट पर |

 

घर था हज़ार कोस मगर फ़िक्र साथ थी ,

मन हो गया उदास बनारस के घाट पर |

 

संज्ञा क्रिया की संधि में विचलित हुआ ये मन

गढ़ने लगा समास बनारस के घाट पर |

 

दुनिया के रंग देख कर हर रोज ही कबीर ,

करता है अट्टहास बनारस के घाट पर |

 

बदरंग हुआ जल तमाम मछलियाँ मरीं ,

किसका हुआ निवास बनारस के घाट पर |

 

फिर आओ भगीरथ नयी सी गंगा बुलाओ ,

गाता है रविदास बनारस के घाट पर |

 

जमने लगी है आरती उत्सव भी हो रहे ,

फिर से जगी है आस बनारस के घाट पर |

 

काशी को बम का खौफ अमाँ भूल जाईये ,

मत बोइये खटास बनारस के घाट पर |

 

दीना की चाट  खूब तो अख्तर की मलइयो ,

रिश्तों में है मिठास बनारस के घाट पर |

Views: 2451

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on April 29, 2011 at 7:17pm
आभार नेमीचन्द्र जी आपकी तारीफ हौसला और ऊर्जा देती है |
Comment by nemichandpuniyachandan on April 27, 2011 at 5:07pm
Shree Arun kumar pandey sahab,phir aao bhagirath nai si ganga bulao,gataa hai ravidas banaras ke ghat par.vaah ye sheir to dil me utar gaya.bakee poori ghazal ke sheir ek se badkar ek hai,badhai
Comment by Abhinav Arun on February 15, 2011 at 2:08pm
बटन से कुछ सक्रियता बढ़ी है ...अच्छा हुआ ..शुक्रिया साथियों |
Comment by Abhinav Arun on February 9, 2011 at 7:30am
आभार राकेश जी , आपके शब्द मुझे बल देंगे बेहतर लिखने के लिये |
Comment by Abhinav Arun on February 6, 2011 at 10:53am
आभारी हूँ आशीष जी आपके प्रोत्साहन के लिये \
Comment by आशीष यादव on February 6, 2011 at 10:42am
फिर से एक उम्दा ग़ज़ल की प्रस्तुति| इस मंच पे तो सुना नहीं पढ़ा ही जाता है और मै जब पढ़ रहा हूँ आप की ग़ज़लों की बात बहुत ही अनोखी होती होती है|
Comment by Abhinav Arun on February 4, 2011 at 1:07pm
शुक्रिया बागी जी \गज़ल आपको भाई मैं आभारी हूँ |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2011 at 7:39pm
बहुत बढ़िया अरुण जी, आपने तो घर बैठे ही काशी की खूबसूरती दिखा दिया | बेहद खुबसूरत ग़ज़ल | दाद कुबूल करे |
Comment by Abhinav Arun on February 2, 2011 at 2:03pm

आदरणीया रंजना जी , सर्वश्री प्रभात जी ,सुजीत जी ,तिलक राज जी आप सब ने मेरी गज़ल को सराहा आभारी हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ | शुक्रिया |

Comment by prabhat kumar roy on February 2, 2011 at 7:22am
A vary good GAZAL by poet ABHINEV . I like it.

दुनिया के रंग देख कर हर रोज ही कबीर ,

करता है अट्टहास बनारस के घाट पर |

Wonderful lines.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service