ग़ज़ल :- मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत
कैद बेशक है आज पिंजर में ,
हौसला है मगर अभी पर में |
मिस्र वालों ने दिखाई हिम्मत ,
जी रहे हम न जाने किस डर में |
हत परिंदों को बचाता है कौन ,
देव मिलते नहीं हैं अब नर में |
धूल जूते की बता देगी तुम्हें ,
कोस कितने चला है दिन भर में |
दिल्ली चिर-काल से लुटेरी है ,
राजधानी करो अमृतसर में |
घर में बच्चों को सिखाएंगे क्या ,
घूस जो ले रहे हैं दफ्तर में |
बेटियों वाले सहमें होते हैं ,
गुण वो देखेंगे क्या भला वर में |
खून खरगोश का हुआ होगा ,
हुस्न निखरा है आपका फर में |
कौन 'साये में धूप' ले आया ,
ज्वार उठने लगा समंदर में |
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हौसला है मगर अभी पर में |
हत परिंदों को बचाता है कौन ,
देव मिलते नहीं हैं अब नर में |
धूल जूते की बता देगी तुम्हें ,
कोस कितने चला है दिन भर में |
घर में बच्चों को सिखाएंगे क्या ,
घूस जो ले रहे हैं दफ्तर में |
बेटियों वाले सहमें होते हैं ,
गुण वो देखेंगे क्या भला वर में |
इस ग़ज़ल की भी क्या रवानी है,
हर इक शे'र इक कहानी है||
कौन 'साये में धूप' ले आया ,
ज्वार उठने लगा समंदर में |
"साये मे धूप" की राह पर ही अग्रसर है आपकि लेखनी। बधाई
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