ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया
छत से निकला आसमां पे छा गया ,
वो धुआं था रोशनी को खा गया |
सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,
क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |
टहनियों पर तितलियों की लाश है ,
फूल जिसके हक में था वो पा गया |
आप अपसंस्कृति के निंदक थे कभी ,
आपको भी अब ये मंज़र भा गया |
जब बुजुर्गों के चरण छूते थे हम ,
दौर एक ऐसा अदब का था गया |
हम जमूरे की तरह मृतप्राय थे ,
खेल की कीमत मदारी पा गया |
कहकहों में आप जब मशगूल थे ,
बज़्म में चुपचाप शायर आ गया |
(१६-०९-०४
Comment
शमशाद जी इधर कुछ पुरानी गज़लों को तिथि सहित देने का प्रयास किया है | आपको ये गज़ल पसंद आयी , आभारी हूँ | शुक्रिया !!
सर्वश्री शेष जी , राकेश जी ,और वीनस जी आप सब लोगों का स्नेह ही इस कलम की असली ताकत है आभार |
जय हो जय हो
कई शेर तो इतने लाजवाब बने हैं की किसे कोट करू समझ ही नहीं आ रहा
आपके पास उच्च कोटि की कहन है औरआपको पढ़ना बड़ा अच्छा लगता है
आशीष जी आभारी हूँ |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online