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ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया

ग़ज़ल : - वो  धुआं था रोशनी को खा गया

छत से निकला आसमां पे छा गया ,

वो  धुआं था रोशनी को खा गया |

 

सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,

क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |

 

टहनियों पर तितलियों की लाश है ,

फूल जिसके हक में था वो पा गया |

 

आप अपसंस्कृति के निंदक थे कभी ,

आपको भी अब ये मंज़र भा गया |

 

जब बुजुर्गों के चरण छूते थे हम ,

दौर एक ऐसा अदब का था गया |

 

हम जमूरे की तरह मृतप्राय थे ,

खेल की कीमत मदारी पा गया |

 

कहकहों में आप जब मशगूल थे ,

बज़्म में चुपचाप शायर आ गया |

                                        (१६-०९-०४

 

 

 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on February 20, 2011 at 12:01pm
 

शमशाद जी इधर कुछ पुरानी गज़लों  को तिथि सहित देने का प्रयास किया है | आपको ये गज़ल पसंद आयी , आभारी हूँ | शुक्रिया !!

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 20, 2011 at 9:27am
अगर ये २००४ की रचना है तब और भी सफ़ल है..क्योंकि वक्त के गुजरने का अभी कोई अहसास हुआ ही नही...बधाई स्वीकार करें, अभिनव जी..सादर
Comment by Abhinav Arun on February 14, 2011 at 11:55am
shukriya ashvini jee
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 13, 2011 at 9:23pm
bahut shandar kaha hai bhai,badhai
Comment by Lata R.Ojha on February 13, 2011 at 12:15am
behtareen ..waah Arun ji ..
Comment by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 2:52pm

सर्वश्री शेष जी , राकेश जी ,और वीनस जी आप सब लोगों का स्नेह ही इस कलम की असली ताकत है आभार |

Comment by वीनस केसरी on February 6, 2011 at 3:30pm

जय हो जय हो 

 

कई शेर तो इतने लाजवाब बने हैं की किसे कोट करू समझ ही नहीं आ रहा 

 

आपके पास उच्च कोटि की कहन है औरआपको पढ़ना बड़ा अच्छा लगता है  

Comment by Abhinav Arun on February 6, 2011 at 10:52am

आशीष जी आभारी हूँ |

Comment by आशीष यादव on February 6, 2011 at 10:20am
किस शे'र की तारीफ़ करू, छोडू किसे| प्रत्येक शे'र दाद का हक़दार है|
Comment by Abhinav Arun on February 6, 2011 at 9:31am
आदरणीया वंदना जी , एवं श्री वीरेन्द्र जी आपने गज़ल सराही शुक्रिया | आपके शब्द मुझे उर्जा देंगे और बेहतर करने के लिये |

कृपया ध्यान दे...

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