For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया

ग़ज़ल : - वो  धुआं था रोशनी को खा गया

छत से निकला आसमां पे छा गया ,

वो  धुआं था रोशनी को खा गया |

 

सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,

क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |

 

टहनियों पर तितलियों की लाश है ,

फूल जिसके हक में था वो पा गया |

 

आप अपसंस्कृति के निंदक थे कभी ,

आपको भी अब ये मंज़र भा गया |

 

जब बुजुर्गों के चरण छूते थे हम ,

दौर एक ऐसा अदब का था गया |

 

हम जमूरे की तरह मृतप्राय थे ,

खेल की कीमत मदारी पा गया |

 

कहकहों में आप जब मशगूल थे ,

बज़्म में चुपचाप शायर आ गया |

                                        (१६-०९-०४

 

 

 

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on February 20, 2011 at 12:01pm
 

शमशाद जी इधर कुछ पुरानी गज़लों  को तिथि सहित देने का प्रयास किया है | आपको ये गज़ल पसंद आयी , आभारी हूँ | शुक्रिया !!

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 20, 2011 at 9:27am
अगर ये २००४ की रचना है तब और भी सफ़ल है..क्योंकि वक्त के गुजरने का अभी कोई अहसास हुआ ही नही...बधाई स्वीकार करें, अभिनव जी..सादर
Comment by Abhinav Arun on February 14, 2011 at 11:55am
shukriya ashvini jee
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 13, 2011 at 9:23pm
bahut shandar kaha hai bhai,badhai
Comment by Lata R.Ojha on February 13, 2011 at 12:15am
behtareen ..waah Arun ji ..
Comment by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 2:52pm

सर्वश्री शेष जी , राकेश जी ,और वीनस जी आप सब लोगों का स्नेह ही इस कलम की असली ताकत है आभार |

Comment by वीनस केसरी on February 6, 2011 at 3:30pm

जय हो जय हो 

 

कई शेर तो इतने लाजवाब बने हैं की किसे कोट करू समझ ही नहीं आ रहा 

 

आपके पास उच्च कोटि की कहन है औरआपको पढ़ना बड़ा अच्छा लगता है  

Comment by Abhinav Arun on February 6, 2011 at 10:52am

आशीष जी आभारी हूँ |

Comment by आशीष यादव on February 6, 2011 at 10:20am
किस शे'र की तारीफ़ करू, छोडू किसे| प्रत्येक शे'र दाद का हक़दार है|
Comment by Abhinav Arun on February 6, 2011 at 9:31am
आदरणीया वंदना जी , एवं श्री वीरेन्द्र जी आपने गज़ल सराही शुक्रिया | आपके शब्द मुझे उर्जा देंगे और बेहतर करने के लिये |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service