For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो गुज़र गया वो गुज़र गया ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212  11212  11212   11212

 

उसे भूल जा तू न  याद कर, जो गुज़र गया वो गुज़र गया

जिसे तख़्ते दिल में बिठाया था,वो उतर गया तो उतर गया

 

यहाँ आंधियों का वो ज़ोर है ,कि  उजड़ गया है मेरा चमन 

मेरी चाहतें मिली ख़ाक में , मेरा ख़्वाब था जो बिखर गया

 

सुनो हाकिमों मुझे दो सजा , है गुनाह मुझको क़ुबूल सब

मेरा यार मेरा गवाह था , मुझे ग़म है वो ही मुकर  गया

 

ये जो बारिशें हुई अश्क की , ये कहीं से बात भली भी है

तेरा ग़म पिघल के जो बह गया, तेरा अक़्स भी है निखर गया 

 

तेरा हर सितम है अजीबतर , मेरा हौसला भी अज़ीमतर

मुझे उस तरफ से उजाड़ा जब, तो मै इस तरफ से सँवर गया

************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 1131

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2014 at 4:08pm

आदरणाय अरुण अनंत भाई , गज़ल की सराहना कर मेरा उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहेदिल से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 13, 2014 at 4:06pm

आ दरणीय बृजेश भाई , गज़ल को आपकी सराहना मिली , मेरा ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ , आपका बहुत बहुत आभार ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 13, 2014 at 1:01pm

सुनो हाकिमों मुझे दो सजा , है गुनाह मुझको क़ुबूल सब

मेरा यार मेरा गवाह था , मुझे ग़म है वो ही मुकर  गया

ये जो बारिशें हुई अश्क की , ये कहीं से बात भली भी है

तेरा ग़म पिघल के जो बह गया, तेरा अक़्स भी है निखर गया ......कमाल की ग़ज़ल ..आदरनीय गिरिराज भाईसाब इतनी लम्बी बहर के इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ...सादर बधाई के साथ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 13, 2014 at 11:02am

वाह वाह आदरणीय गिरिराज सर क्या कहने लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर अच्छे लगे खासकर इन दो अशआरों पर विशेष दाद कुबूल फरमाए.

सुनो हाकिमों मुझे दो सजा , है गुनाह मुझको क़ुबूल सब

मेरा यार मेरा गवाह था , मुझे ग़म है वो ही मुकर  गया ... गज़ब गज़ब

तेरा हर सितम है अजीबतर , मेरा हौसला भी अज़ीमतर

तू ने उस तरफ से उजाड़ा जब, तो मै इस तरफ से सँवर गया. वाह वाह वाह

Comment by बृजेश नीरज on January 12, 2014 at 10:53pm

वाह! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2014 at 7:58am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , गज़ल को आपका आशीर्वाद मिला , बहुत खुशी हुई , आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2014 at 7:57am

आदरणीय अभिनव भाई , गज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया बहुत उत्साह  वर्र्धन कर रही है , सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2014 at 7:55am

आदरनीय बड़े भाई अखिलेश जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by vijay nikore on January 12, 2014 at 7:37am

बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर। बधाई, मेरे भाई।

 

Comment by Abhinav Arun on January 11, 2014 at 3:00pm

सुनो हाकिमों मुझे दो सजा , है गुनाह मुझको क़ुबूल सब

मेरा यार मेरा गवाह था , मुझे ग़म है वो ही मुकर  गया

.......आदरणीय श्री गिरिराज जी हर शेर नायाब----- ग़ज़ल जैसे नगीना हुई है रोशन रोशन कलाम----बहुत मुबारबाद आपको !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service