नित्यानंदम स्तयं निरूपम !
श्यामल गंभीर रात्रि
सुनता हूँ संवेदनमय स्वर
"विचारों में गुँथे, वेदना से बिंधे
अस्वीकृत एकाकी मन
तू उदास न हो"
टूटे संबंधों के
वीरान प्रवहमान प्रसारों में
कल की पुरानी किसी की
प्यार भरी हँसी, स्नेहमयी आँखों में
देखो, शायद सुख-शांति मिल जाए
देखो उन आँखों में, इतना न देखो
कि तुम्हें अनजाने
अज्ञात दर्द कोई और मिल जाए
मानवीय संबंधों का आत्मीय दर्शन
मौन में था पला, मौन में जिया
क्या हुआ कुछ तो हुआ उस मौन को
कि अब वह रहस्यमय
द्वंद्व-स्थिति में अनंत हुआ ?
याद है ? रात्रि-श्यामल वेला थी
मन:स्थिति को तोलती
हृदय की गाँठों को खोलती
तू कहती थी ... यह संबंध
था न दिलों का, न गिलों का
न उलझे-सुलझे खयालों का
न बँधी थी आत्मा आत्मा से
संबंध था सदैव पूर्ण-सम्पूर्ण
नित्यानंदम स्तयं निरूपम
क्षमा करो मित्र अति आत्मीय
शत शंकाओं के धुँधलके में
कठिन तथ्यों के विश्लेषण करते
आज पूछ लूँ क्या, कब क्या हुआ
नित्यानंदम स्तयं निरूपम रूठ गया ?
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-विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया सरिता जी
//एक बार फिर में निशब्द हो गयी ....आपकी लेखनी मन के भावों कि स्याही से ओत-प्रोत है और उसमे आपके ह्रदय की कोमलता, मिठास मिल कर पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देती है.//
आपकी भावाभिव्यक्ति मेरी प्रेरणा का स्रोत है। उत्साहवर्धन हेतु बहुत धन्यवाद, आदरणीया प्रियंका जी।
//आपकी रचनाओं में जो भाव -प्रवणता होती है,उसे शब्दों में निरूपित करना असम्भव है। उन्हें पढ़ते हुए ,केवल उन भावों को अनुभूत किया जा सकता है,वर्णित नहीं। अतिसुन्दर रचना!//
आपके यह शब्द मेरे लिए पुरस्कार हैं, आदरणीया सावित्री जी, आपका हार्दिक धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
//आपकी रचनाओं को पढना सदा एक अनोखी अनुभूति दे जाता है//
रचनाओं को ऐसी सराहना देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी।
सादर,
विजय निकोर
//आपकी रचनाएं सदैव एक विशेष प्रवाह में बहा ले जातीं हैं...इस रचना में प्रस्तुत अन्त:संवाद अन्त:करण पर अमिट छाप डाल रहा है।
संवेदनाओं का इतनी सूक्ष्मता से विश्लेषित कर उनके चरम को स्पर्श करना...सच में बहुत आनन्ददायी होता है।//
आदरणीया वंदना जी, आपने मेरी भावाभिव्यक्ति के मर्म को छू कर सदैव बहुत मान दिया है, और मैं इसके लिए हृदयतल से आभारी हूँ।
मेरा साहस बढ़ाए रखें,
विजय
रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय रमेश जी।
सादर,
विजय निकोर
आपने सफ़र पर रहते हुए भी रचना को समय दिया और प्रतिक्रिया दी, आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय भाई सौरभ जी।
सादर,
विजय नोकोर
//बहुत सुंदर....आपकी रचनाएं.. लौकिक अलौकिक गुणों की खान होती है....सगुण निर्गुण का संवाद...दार्शनिक सब कुछ//
आप सदैव मेरी रचनाओं को इतना मान देती हैं, आपका शत-शत आभार, आदरणीया कुंती जी।
सादर,
विजय निकोर
//आत्मीय रिश्तों मे आये आंतरिक परिवर्तन और उससे उपजे प्रश्न को बहुत सुन्दरता से बयान किया है आपने//
मेरे भाई आदरणीय गिरिराज जी, मुझको आपसे जो स्नेह मिला है उसके लिए आभारी हूँ।
सादर,
विजय निकोर
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नीरज कुमार जी।
सादर,
विजय निकोर
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