आह लिखो , हुंकार लिखो , कुर्बानी लिखना
बंद करो किस्सों में राजा रानी लिखना
सूखे खेतों की किस्मत में पानी लिखना
अब लिखना तो पीलेपन को धानी लिखना
और भी हैं रिश्ते यारों तुम छोडो भी अब
महबूबा के दर अपनी पेशानी लिखना
मानवता उन्वान , भरा हो प्रेम कहन में
अपना जीवन ऐसी एक कहानी लिखना
जब भी तुम अपने लब पर मुस्कान लिखो तब
मेरे माथे पर भी कुछ ताबानी लिखना
जो कर दें दरबारी धार कलम की , ऐसे -
शाही फरमानों पर नाफरमानी लिखना
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................................................. अरुन श्री !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
और भी हैं रिश्ते यारों तुम छोडो भी अब महबूबा के दर अपनी पेशानी लिखना
gazal kafi prabhaveet karti hai badhai sweekar karen.
आदरनीय अरुण श्रीवास्तव भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है , हर शे र बेमिसाल हैं ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
और भी हैं रिश्ते यारों तुम छोडो भी अब
महबूबा के दर अपनी पेशानी लिखना
जो कर दें दरबारी धार कलम की , ऐसे -
शाही फरमानों पर नाफरमानी लिखना ------------- ढेरों बधाइयाँ ॥
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