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प्रस्तुति के कथ्य और तथ्य अच्छे हैं. लेकिन इनके लिए आपको क्या बधाई दूँ ? आप स्वयं वैचारिक रूप से संयत और सक्षम हैं.
अलबत्ता, शिल्प पर आपसे ज़रूर बातें करूँगा.
आम व्यक्ति गणराज, किन्तु तंत्र में है विवश .. .. रोला के इस पद के साथ आपने क्या किया है ?
है विवश यानि २१११ क्या यह मात्रिकता रोला के सम चरण के अंत में स्वीकार्य है ? नहीं.
दूसरे, आप अच्छा अभ्यास करते हैं तो तुकान्तता को साधिये.
वैसे स और श की तुकान्तता के विरुद्ध छंद शास्त्र कुछ नहीं कहता. लेकिन जब वर्णमाला में स और श अलग-अलग अक्षर हैं तो एक रचनाकार के रूप में हम भी इन अक्षरों को वैसा ही आदर क्यों न दें ?
यों, इस तथ्य को बहुत पहले जानता/मानता तो मैं भी नहीं था. चूँकि, अब जान गया हूँ, तो भले ही छंदशास्त्र इनकी तुकान्तता के विरुद कुछ न कहे, लेकिन अब मैं भी सावधानी बरतने की कोशिश करता हूँ
शुभेच्छाएँ विंध्येश्वरी भाईजी..
बहुत सुन्दर छंद रचा है भाई जी आपने! गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई!
'स' और 'श' के तुकान्त को लेकर सुधीजन आपत्ति करेंगे!
सादर!
आदरणीय विन्ध्येश्वरी भाई , सुन्दर कुन्डलिया के लिएय आपको बधाई ॥
बहुत सुन्दर आदरणीय विनय जी | बधाई
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