Comment
भइया, शिल्प और भाषा के स्तर पर यह प्रस्तुति कुछ जमी नहीं.
कृपया प्रयास बनाये रहें.
शुभेच्छाएँ
आदरनीय जीतेंद्र जी! रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरनीय नीरज ! जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरनीय रमेश जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरनीय गिरिराज जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय अखिलेश सर जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय अरुण भाई जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.
मन की हठता सुन है तब ही, जब ही इसको तुम ढील दियो है।
कहता मन लोलुप जो तुम से, उसके सुर में सुर आप दियो है॥
निज आत्म सुनो सच वो कहता, 'वह ईश्वर अंश' कहे बुध भाई।
अनमोल बड़ा यह जीवन है, इसको नर वीर न व्यर्थ गवाई॥
बहुत सुंदर संदेशपरक रचना आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें
बहुत ही उत्कृष्ट एवं सुन्दर गीत .. हार्दिक बधाई
बहुत ही सुंदर सवैया त्रिपाढीजी सादर बधाई
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