For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लो,फिर याद आई
आँसुओं की बाढ़ आई
थी उनके करीब इतने
वो थे मुझमे मै थी उनमे |

कहा था कभी
चली जायेगी ससुराल  
कैसे रहूँगा तुम बिन,
खुद छोड़ गये साथ
ये भी ना सोचा  
कैसे रहूँगी उन बिन |

बरसों बीत गये
निहारते हुए राह
ना कोई सन्देश ना कोई तार
खड़ी हूँ अब भी वहीं
संभाले दर्द का सैलाब  
छोड़ गये थे पापा जहाँ |

मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित 
  
 
   

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 2:48pm

सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति आदरणीया हार्दिक बधाई आपको//////////   सादर

Comment by Meena Pathak on February 10, 2014 at 12:51pm

सादर आभार आदरणीय आशुतोष जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2014 at 2:19pm

इस मर्मस्पर्शी रचना हेतु आपको हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by Meena Pathak on February 8, 2014 at 11:54am

आदरणीय रमेश जी बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on February 8, 2014 at 11:53am

आदरणीय कुन्ती दी सादर आभार स्वीकार कीजिये 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 7, 2014 at 7:25pm

आदरणीया मीनाजी, हृदय को छूती इस रचना के लिये कोटिश बधाई

Comment by coontee mukerji on February 6, 2014 at 11:48pm

बहुत मर्मस्पर्शी रचाना है..,हार्दिक बधाई.

Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:30pm

प्रिय जितेन्द्र जी .. आभार 

Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:29pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी ...बहुत बहुत आभार ..

Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:23pm

आदरणीया कल्पना दी ..बहुत बहुत आभार | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है,…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है, पहुँचे लाखों…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service