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लो,फिर याद आई
आँसुओं की बाढ़ आई
थी उनके करीब इतने
वो थे मुझमे मै थी उनमे |

कहा था कभी
चली जायेगी ससुराल  
कैसे रहूँगा तुम बिन,
खुद छोड़ गये साथ
ये भी ना सोचा  
कैसे रहूँगी उन बिन |

बरसों बीत गये
निहारते हुए राह
ना कोई सन्देश ना कोई तार
खड़ी हूँ अब भी वहीं
संभाले दर्द का सैलाब  
छोड़ गये थे पापा जहाँ |

मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित 
  
 
   

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Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:23pm

आदरणीय केवल जी रचना सराहने हेतु बहुत बहुत आभार स्वीकारें | सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2014 at 5:10am

बहुत मर्मस्पर्शी रचना मन को छू लेती पंक्तियाँ, सादर! बधाई आदरणीया मीना दीदी

Comment by annapurna bajpai on February 5, 2014 at 11:25pm

वाह ! मीना दी सुंदर भावों से सज्जित रचना , आपकी रचना ने सच मे पापा की याद दिला दी । 

Comment by कल्पना रामानी on February 5, 2014 at 10:44pm

बहुत मर्मस्पर्शी रचना लिखी है आपने!  सादर बधाई स्वीकार कीजिये मीना जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2014 at 8:54pm

वाह..!.........खड़ी हूँ अब भी वहीं
संभाले दर्द का सैलाब
छोड़ गये थे पापा जहाँ ......हृदय को छूती सुन्दर रचना। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। सादर,

Comment by Shyam Narain Verma on February 5, 2014 at 4:30pm
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई...

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