कुछ तो मजबूरी की हद रही होगी ,
या निर्लज्जता की इंतेहा रही होगी ,
वो सम्भावित प्रधान मंत्री के पिता थे,
उनकी पत्नी ने प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति
बनाये और अपनी उंगलियों पर नचाये होंगे ,
कुछ तो हुआ होगा की 11 साल तक
कई असहाय राष्ट्रपतियों के ज़मीर को
आत्मदाह करने पर मजबूर होना पडा होगा,
और कानून को शर्मिंदगी का कफन ओढना पडा होगा.
कुछ तो हालात की मार रही होगी,
यूँही खून, पानी और आत्मा, जड नही होती
अप्रकाशित मौलिक
Comment
आदरणीय लक्षमण प्रसादजी ,रामशिरोमणीजी ,अखिलेश श्रीवास्तवजी
रचना पसंद आने के लिए शुक्रिया
आदरणीय दिलीप भाई,
कड़ुवा सच कहने के लिए हार्दिक बधाई ।
पद , कुर्सी, झूठे सम्मान , और धन के लिए अपनी आत्मा और गैरत को मारकर नत मष्तक होने वालों से स्वयं यह कुर्सी और देश की जनता दोनों छुटकारा चाहती है।......... सादर्
सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीय दिलीप जी। ……। हार्दिक बधाई आपको //सादर
यूँही खून, पानी और आत्मा, जड नही होती- बिलकुल सोच का विषय है डॉ दिलीप मित्तल जी | इस प्रस्तुती के लिए बधाई
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