सात दोहे – '' रिश्ते ''
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नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात
खामोशी देती रही , हर रिश्ते को मात
रिश्तों को भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल
बिना तेल देखे बहुत , झटके खाते मेल
तेरा घोड़ा तेज़ है , माना मेरा सुस्त
देखो रिश्ता हो गया , पहले जैसे चुस्त
तू माने खुद को बड़ा , तो मैं भी हूँ शेर
बढ़ने में अब दूरियाँ , नहीं लगेगी देर
आपस की कमियाँ भरें , यारी की ये रीत
यही बढ़ाती है सदा , हर नाते में प्रीत
हाथ मिला के कब हुआ, मन से मन का मेल
ये भावों की बात है , ये अन्दर का खेल
मैं जैसा भी हूँ अभी , जो कर ले स्वीकार
उसकी सारी ग़लतियों, से मुझको भी प्यार
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया कल्पना जी , दोहों की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार
बहुत सुंदर दोहे आदरणीय गिरिराज जी, मन से बधाई आपको
आदरणीय बृजेश भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
अच्छे दोहे हैं! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीया सरिता जी , दोहों की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
रिश्तों की अहमियत लिए खुबसूरत दोहे ,बधाई आदरणीय
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