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कौन चुपके आ रहा है आज मेरे मौन में
गीत कोई गा रहा है आज मेरे मौन में
वाक़िया जिसकी वज़ह से दूरियाँ बढ़ने लगीं
बस वही समझा रहा है ,आज मेरे मौन में
ख़्वाब कोई अब पुराना टूट जाने के लिये
देख फिर इतरा रहा है , आज मेरे मौन में
अश्क़ मेरी आखों से जो बह नहीं पाया कभी
रो रहा , पछता रहा है ,आज मेरे मौन में
रास्ता छोड़ा अगर तो मै न फिर वापस गया
खूब याद आता रहा है आज मेरे मौन में
यार मेरे अब न हँसने की कोई बातें करो
दर्द कोई खा रहा है , आज मेरे मौन मे
ज़िन्दगी की डोर का इक छोर हाथ आया ही था
फिर कोई उलझा रहा है ,आज मेरे मौन में
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी इस प्रस्तुति को मैं रुक्न पर आधारित नवगीत कहूँ तो अतिशयोक्ति न होगा.
आगे बहुत-बहुत बधाई... :-)))
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज भंडारी जी
कौन चुपके आ रहा है आज मेरे मौन में
गीत कोई गा रहा है आज मेरे मौन में.............................मतले में इता दोष है, कृपया एक बार देख लें
वाक़िया जिसकी वज़ह से दूरियाँ बढ़ने लगीं
बस वही समझा रहा है ,आज मेरे मौन में.........................'बस वही समझा 'को यदि 'दिल वही समझा' करें तो ?
ख़्वाब कोई अब पुराना टूट जाने के लिये
देख फिर इतरा रहा है , आज मेरे मौन में............ ख्वाब का टूटेनेि के लिए इतराना...इस जगह यदि 'घबरा' कहें तो ?
अश्क़ मेरी आखों से जो बह नहीं पाया कभी
रो रहा , पछता रहा है ,आज मेरे मौन में........................बहुत सुन्दर
रास्ता छोड़ा अगर तो मै न फिर वापस गया
खूब याद आता रहा है आज मेरे मौन में.................आता रहा भी यहाँ कुछ अटक रहा है क्योंकि बात आज की हो रही है ये एक लंबा समय इन्डिकेट कर रहा है
यार मेरे अब न हँसने की कोई बातें करो
दर्द कोई खा रहा है , आज मेरे मौन मे............................उफ्फ
ज़िन्दगी की डोर का इक छोर हाथ आया ही था
फिर कोई उलझा रहा है ,आज मेरे मौन में.....................बहुत सुन्दर
इस सुन्दर ग़ज़ल पर मेरे हार्दिक बधाई आदरणीय
आदरणीय सुरेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
वाक़िया जिसकी वज़ह से दूरियाँ बढ़ने लगीं
बस वही समझा रहा है ,आज मेरे मौन में
ज़िन्दगी की डोर का इक छोर हाथ आया ही था
फिर कोई उलझा रहा है ,आज मेरे मौन मे
आदरणीय गिरिराज भाई सुन्दर गजल ...अच्छे भाव जिंदगी में बड़े रंग दिखते हैं
भ्रमर ५
आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना करने और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय भाई गिरिराज जी एक बेहतरीन गजल हुई है . हर शे'र लाजवाब है . यह शे'र अत्यधिक पसंद आया
अश्क़ मेरी आखों से जो बह नहीं पाया कभी
रो रहा , पछता रहा है ,आज मेरे मौन में
ख़्वाब कोई अब पुराना टूट जाने के लिये
देख फिर इतरा रहा है , आज मेरे मौन में
ज़िन्दगी की डोर का इक छोर हाथ आया ही था
फिर कोई उलझा रहा है ,आज मेरे मौन में....आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ..आजकल कह्मुकारियों का माहोल चल रहा है आपने ग़ज़ल में कुछ उसी अंदाज में बात करने की कोशिश की है ..उद्धृत शेर मुझे बेहद पसंद आये ,,,आपको तहे दिल बधाई सादर ..
आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ॥
आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
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