बिटिया ना अपनी हुई कैसा रहा विधान
राजा हो या रंक की बिटिया सभी समान /
बिटिया सभी समान रहेंगी सदा बेगानी
छोड़ेगी वो गेह रीत पड़ेगी निभानी
चाहे गेह अमीर या रही गरीब की कुटिया
सरिता कहती मान पराई होती बिटिया//
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...........मौलिक व अप्रकाशित...........
Comment
आदरणीया सरिता भाटिया जी
मैं आदरणीय बृजेश जी के कहे से सहमत हूँ गेह के लिए अमीर शब्द वाली पंक्ति में इस शब्द के प्रयोग पर मुझे भी संतुष्टि नहीं है.. आपने एक बहुत ही सामान्य कथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जो बहुत ही प्रभावशाली तरह से किया जा सकता था.. शिल्पगत कमियाँ, मात्राओं की गड़बड़ , साथ ही वचन दोष नें इस रचना को कमज़ोर कर दिया.
इसे पुनः साधने का प्रयास करें
शुभकामनाएं
अच्छी कुण्डलियाँ! आपको हार्दिक बधाई!
'गेह' का प्रयोग जिस तरह से किया गया है, मुझे उचित नहीं लगा. इस पर आगे सुधीजन मार्गदर्शन प्रदान करें.
किसी भी रचना में शिल्प के साथ कहन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. कथ्य की नवीनता किसी भी रचना के लिए आवश्यक है! कहन की दृष्टि से हर विधा की अपनी विशेषता होती है. जहाँ दोहे को कम शब्दों में गहरी बात कहने के लिए प्रयोग किया जाता है वहीँ कुण्डलियाँ का प्रयोग किसी तथ्य के प्रस्तुतीकरण/ स्थापना के लिए किया जाता है. कुण्डलियाँ किसी तथ्य से प्रारम्भ होता है और सहायक तथ्य प्रस्तुत करते हुए उसे अंतिम रूप से स्थपित करता है.
सादर!
बहुत बढ़िया कुण्डलिया , बधाई आ0 सरिता जी ।
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