तरही गजल- 2122 2122 212
आग में तप कर सही होने लगी।
प्यार में मशहूर भी होने लगी।।
जब कभी यादों के मौसम में मिली,
राज की बातें तभी होने लगी।
तुम बहारों से हॅंसीं हस्ती हुर्इं,
आँंख में घुलकर नमी होने लगी।
उम्र से लम्बी सभी राहें कठिन,
पास ही मंजिल खुशी होने लगी।
तुम नजर भी क्या मिलाओगी अभी,
शाम सी मुश्किल घड़ी होने लगी।
चॉंदनी अब चांद से मिलती नहीं,
खौफ हैं बादल गमी होने लगी।
चॉंद मुस्काता रहा हर रात में,
चॉंदनी बीती शदी होने लगी।
रात से मिलकर जुदा शबनम हुर्इ,
दूब की खातिर नमी होने लगी।
सोच कर 'सत्यम', बड़ी राहत मिली,
हर नए गम से खुशी होने लगी।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 अन्नपूर्णा जी, रामानी दी जी, बृजेश भार्इजी, अनिल भार्इजी व जितेन्द्र भार्इजी आप सभी का बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
बेहद खुबसूरत गजल आदरणीय केवल जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें
चॉंद मुस्काता रहा हर रात में,
चॉंदनी बीती शदी होने लगी।....यह तो बिलकुल हटकर है......बहुत खूब............
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
बहुत सुंदर गजल, आदरणीय केवलप्रसाद जी, बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत खूबसूरत गजल , दिली दाद कुबूल करें आ0 केवल भाई जी ।
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