मन तरसे
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तन तरसे मन तरसे .
होली का रंग बरसे .
मै हो गई प्रेम दीवानी
मुझे देख मधुकर हरषे .
फूल गई सब कालिया
मै सुखी निकली घर से .
कोयल कूके पपीहा गाए
भटकी मै बावरी घर से .
लगी हुई विरह वेदना
इलाज नहीं होता हर से .
मेरे प्रियत्तम आ जाओ
मिटे वेदना उस पल से .
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मौलिक व अप्रकाशित"
ओमप्रकाश क्षत्रिय ''प्रकाश''
Comment
खयालों में नहीं , हकीकत में खेलो .
मन में खुशिया निर्मलता ले लो .
.................... होली है .
प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .
मदन मोहन सक्सेना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, आप सभी को भी होली की हार्दिक शुभकामना .
laxman प्रसाद ladiwala जी आप ने प्रतिक्रिया दे कर मेरा उत्साह वर्धन किया इस के लिए आभार
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
गत २ दिनों में ४२ रचनाकारों ने रचना देखी . यह अच्छी बात है . सभी का आभार .
कविता पर यहाँ इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिलेंगी , यह मैंने कभी नहीं सोचा था . सभी को होली की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाऐ .
मनोज जी मैंने कही मधुकर को कृष्ण के रूप में पढ़ा है .
शिज्ज शंकर जी आप के प्रोत्साहन के लिए आभार
सुजान जी आप का शुक्रिया
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