------पानी में आग -----------
पानी में आग वे लगाने लगे है .
भूखे थे पर वे चहचहाने लगे है .
फूलों की मानिंद प्यार करते थे
काँटों से दोस्ती वे निभाने लगे है .
जो स्वयं पास न कर सके परीक्षा
ऐसे शिक्षक आज पढ़ाने लगे है .
पुलिस ने चोरो से की दोस्ती
गश्त में वे अपनी सुसताने लगे .
देशसेवा का जज्बा लिए थे जो
वे अपने देश को ही खाने लगे है .
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ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश "
-- मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
जीतेन्द्र जी आप को मेरी रचना अच्छी लगी , मेरे लिए यह शकुन की बात है , आभार
वाह बहुत खूब सुन्दर रचना आदरणीय ओम प्रकाश जी , हार्दिक बधाई
बहुत खुबसूरत रचना आदरणीय ओमप्रकाश जी, आपको हार्दिक बधाई
सरिता जी आप की सराहना के लिए आभार . आप को मेरी रचना अच्छी लगी . इस के लिए शुक्रिया .
बहुत खुबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई
laxman जी आप का बहुत बहुत आभार . आप की सलाह सरआँखों पर . इस पर अमल करूँगा .
भाई ओमप्रकाश जी , प्रयास के लिए हार्दिक बधाई ,भाई गणेश जी की सलाह पर अवश्य विचार करें .
स्वागत है आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी ।
गणेश जी आप के मार्गदर्शन का आभार . आप ने बहुत अच्छा सुझाव दिया है .
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