2212 2211 221 212
पल में रुलाती पल में हँसाती है जिन्दगी
खेला नया हर पल ही रचाती है जिन्दगी |
ऐ नौजवानों देश के इतिहास अब रचो
हर रोज ही इक पाठ सिखाती है जिन्दगी |
टूटे हैं जो विश्वास कहीं आइने से अब
फिर रोज क्यों विश्वास दिलाती है जिन्दगी ?
गुलशन कभी पतझड़ कभी मेरी है बगिया में
कैसे कहाँ क्या रंग दिखाती है जिन्दगी |
जब भी विचारों में घुली हैं रंजिशें यहाँ
ऐसे विचारों से जहर पिलाती है जिन्दगी |
माहौल का है ऐसा हुआ कुछ अभी असर
गुल रोज ही अब एक खिलाती है जिन्दगी |
हम हों कहीं भी झुकते नहीं हैं कभी मगर
अपनों के आगे हमको झुकाती है जिन्दगी |
....................................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया सरिता जी , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ !! ये बहर मान्य बह्र है या नही इसमे शंका है , किसी जानकार का इंतिज़ार करना चाहिये !!
जीवन को परिभाषित करने का सुन्दर प्रयास किया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीया सरिताजी,
जीवन के उतार चढ़ाव को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया है , हार्दिक बधाई ।
बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीया सरिता जी
टूटे हैं जो विश्वास कहीं आइने से अब
फिर रोज क्यों विश्वास दिलाती है जिन्दगी ?............इस शेर पर ढेरों बधाई स्वीकारें
आदरणीय भुवन जी हार्दिक आभार
आदरणीया अन्नपूर्णा जी हार्दिक आभार
आदरणीय दी कल्पना जी हार्दिक आभार स्नेह बनाये रखें
मैंने सुधार कर लिया है आपने सही कहा अब इसे ऐसे पढ़ें
जब भी विचारों में घुली हैं रंजिशें यहाँ
ऐसे विचारों से ही मिटाती है जिन्दगी |
आदरणीय अभिनव जी हार्दिक आभार ..सादर
जी मुकेश जी हार्दिक आभार ,जी मौलिक नहीं है
आदरणीया बहुत ही खूबसूरत भाव हैं आप के....
हम हों कहीं भी झुकते नहीं हैं कभी मगर
अपनों के आगे हमको झुकाती है जिन्दगी
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