For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भुवन निस्तेज
  • Male
  • Baitadi
  • Nepal
Share on Facebook MySpace

भुवन निस्तेज's Friends

  • Mukesh Verma "Chiragh"
  • Krishnasingh Pela
  • gumnaam pithoragarhi
  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
  • गिरिराज भंडारी
  • anand murthy
  • Tilak Raj Kapoor
  • वीनस केसरी
  • योगराज प्रभाकर
 

भुवन निस्तेज's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
NEPAL
Native Place
NEPAL
Profession
STUDY
About me
STUDY HUNGRY

ग़ज़ल

ज्यों जवां ये चांदनी होने लगी

त्यों सुबह की रोशनी होने लगी

 

जब समंदर सी नदी होने लगी

साहिलों सी ज़िन्दगी होने लगी

 

आदमी में हो न हो रूहानियत

आदमीयत लाज़मी होने लगी

 

तितलियों को मिल गयी जब से भनक

बाग़ में कुछ सनसनी होने लगी

 

यार ने आदी बनाया इस क़दर

हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी

 

आँधियों से रूह कांपी रेत की

पर्वतों में दिल्लगी होने लगी

 

फिर मुसाफ़िर रासता मंजिल वही

और कहानी फिर वही होने लगी

 

ख़्वाब नें इतना सताया है हमें

ज़िन्दगी खुद ख़्वाब सी होने लगी

 

जो स्वयं निस्तेज है वो क्या कहें

क्यों उजालों में कमी होने लगी

 

सैकड़ो पर्दों में है ज़म्हुरियत

अब इसी को बेबसी होने लगी

भुवन निस्तेज

(मौलिक व अप्रकाशित)

भुवन निस्तेज's Photos

  • Add Photos
  • View All

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!

भुवन निस्तेज's Blog

ग़ज़ल:गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं (भुवन निस्तेज)

है खोया क्या  किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं,

गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं ।

 

सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,

सभी नेपथ्य में बैठे हुए हल ढूँढते हैं ।

 

उन्हें होगा तज्रिबा भी कहाँ आगे सफर का,

वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।

 

कहीं से खुल तो जाये कोठरी ये आओ देखें,

दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।

 

यूँ भी बेकारियों का मसअला हो जायेगा हल,

जो अब तक खो दिया है…

Continue

Posted on August 30, 2015 at 8:30am — 14 Comments

ग़ज़ल: कोई पत्थर और कोई आईने ले के(भुवन निस्तेज)

कोई पत्थर और कोई आईने ले के

आ रहा हर एक अपने दायरे ले के



यूँ चले हो रात को दीपक बुझे ले के

खुद अँधेरा भी परेशाँ है इसे ले के



बस ठिठुरते रह गए दरवाजे बाहर ख्वाब

ये सुबह आई है कितने रतजगे ले के



जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई

मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के



आपका आना तो कल ही सुर्ख़ियों में था

आज फिर अख़बार आया हादसे ले के



साकिया यूँ बेरुखी से मार मत हमको

रिन्द जायेगा कहाँ ये प्यास ले ले के



कुछ न कुछ…

Continue

Posted on January 15, 2015 at 7:30pm — 16 Comments

ग़ज़ल: कांटे जो मेरी राह में (भुवन निस्तेज)

कांटे जो मेरी राह में बोये बहार ने

छूकर बना दिया है उन्हें फूल यार ने

 

यारी है तबस्सुम से करी अश्क-बार ने

कुछ तो असर किया है खिजाँ की फुहार ने…

Continue

Posted on September 14, 2014 at 10:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल:वो भूलने का असर यादगार से कम था(भुवन निस्तेज )

कहाँ तूफान था वो तो बयार से कम था

वो भूलने का असर यादगार से कम था



खयाल आते ही मुरझाये फूल खिलते थे

गुमाँ-ए-वस्ल कहाँ इस बहार से कम था



छुपाके अश्क तबस्सुम उधार ले ली थी

कहाँ ये चेहरा मेरा इश्तेहार से कम था



वो याद मुझको किये रात दिन रहा ऐसे

मेरा रक़ीब कहाँ तेरे यार से कम था



खरीददार सा आँखों में रौब था सब के

वो घर कहाँ किसी चौक-ओ-बाज़ार से कम था



  मैं ग़मज़दा था, मै निस्तेज था औ' घायल भी

मैं मुन्तसिर था मगर अब की…

Continue

Posted on July 31, 2014 at 10:00pm — 6 Comments

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service