कांटे जो मेरी राह में बोये बहार ने
छूकर बना दिया है उन्हें फूल यार ने
यारी है तबस्सुम से करी अश्क-बार ने
कुछ तो असर किया है खिजाँ की फुहार ने
था बाकमाल कनखियों से झांकना तेरा
छोड़ा नहीं है आज तलक उस खुमार ने
इन ओस की बूंदों से कहाँ प्यास मिटेगी
सहरा बना दिया है मुझे इन्तजार ने
याद आई गाँव की वो घनी छाँव दोपहर
छोड़ा है बेशज़र शहर में रहगुज़ार ने
अब रहबरों से रहजनी होने की है ख़बर
पर्दे सभी हटा दिए हैं राजदार ने
राहों की मुश्किलों ने मिरे होश लिए यूँ
अब तक गले नहीं है लगाया दयार ने
मैं बेकरारियों का भला क्या गिला करूँ
मेरा करार छीन लिया खुद करार ने
टूटेंगे कांच से है मरासिम ये जानकर
खुद का लहू निचोड़ा दिले-सोगवार ने
अब की बहार ने किया ‘निस्तेज’ ये चमन
छोड़ा नहीं था माज़ी की गर्दो-गुबार ने
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू "शकूर" जी मेरे प्रयास को अनुमोदन को सराहने हेतु सादर धन्यवाद...
आदरणीय भुवन जी ग़ज़ल पर प्रयास प्रभावित करता है खासतौर पे अशआर बहुत पसंद आये
था बाकमाल कनखियों से झांकना तेरा
छोड़ा नहीं है आज तलक उस खुमार ने
इन ओस की बूंदों से कहाँ प्यास मिटेगी
सहरा बना दिया है मुझे इन्तजार ने
मैं बेकरारियों का भला क्या गिला करूँ
मेरा करार छीन लिया खुद करार ने
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब अनेक अनेक धन्यवाद....
आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी भाई बहुत बहुत धन्यवाद....
आदरणीय गिरिराज भंदरिसहब आप्का हार्दिक अभिनन्दन....
आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' भाई आप की सराहना वन्दनीय है कृपया जरूरी सुझाव भी देते रहें ....
आदरणीय khursheed khairadi साहब आपकी दाद बहुमूल्य है. कृपया स्नेह बनाए रखे..
आदरणीय हरिबल्लभ शर्मा साहब बेहद धन्यवाद...
आदरणीय कृष्ण सिंह पेला भाइ साहब, मुज्झे भी लग रहा है की कुछ छिद्र इस रचना में रह ही गए हैं. मैं इसे ठीक कररने की कोशिस करूँगा.
आदरणीय नीरज नीर साहब सादर आभार....
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