है खोया क्या किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं,
गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं ।
सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,
सभी नेपथ्य में बैठे हुए हल ढूँढते हैं ।
उन्हें होगा तज्रिबा भी कहाँ आगे सफर का,
वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।
कहीं से खुल तो जाये कोठरी ये आओ देखें,
दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।
यूँ भी बेकारियों का मसअला हो जायेगा हल,
जो अब तक खो दिया है…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on August 30, 2015 at 8:30am — 14 Comments
कोई पत्थर और कोई आईने ले के
आ रहा हर एक अपने दायरे ले के
यूँ चले हो रात को दीपक बुझे ले के
खुद अँधेरा भी परेशाँ है इसे ले के
बस ठिठुरते रह गए दरवाजे बाहर ख्वाब
ये सुबह आई है कितने रतजगे ले के
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के
आपका आना तो कल ही सुर्ख़ियों में था
आज फिर अख़बार आया हादसे ले के
साकिया यूँ बेरुखी से मार मत हमको
रिन्द जायेगा कहाँ ये प्यास ले ले के
कुछ न कुछ…
Added by भुवन निस्तेज on January 15, 2015 at 7:30pm — 16 Comments
कांटे जो मेरी राह में बोये बहार ने
छूकर बना दिया है उन्हें फूल यार ने
यारी है तबस्सुम से करी अश्क-बार ने
कुछ तो असर किया है खिजाँ की फुहार ने…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on September 14, 2014 at 10:00pm — 18 Comments
कहाँ तूफान था वो तो बयार से कम था
वो भूलने का असर यादगार से कम था
खयाल आते ही मुरझाये फूल खिलते थे
गुमाँ-ए-वस्ल कहाँ इस बहार से कम था
छुपाके अश्क तबस्सुम उधार ले ली थी
कहाँ ये चेहरा मेरा इश्तेहार से कम था
वो याद मुझको किये रात दिन रहा ऐसे
मेरा रक़ीब कहाँ तेरे यार से कम था
खरीददार सा आँखों में रौब था सब के
वो घर कहाँ किसी चौक-ओ-बाज़ार से कम था
मैं ग़मज़दा था, मै निस्तेज था औ' घायल भी
मैं मुन्तसिर था मगर अब की…
Added by भुवन निस्तेज on July 31, 2014 at 10:00pm — 6 Comments
हवा का शौक जब पर कुतरना हो गया है
तभी से इंकलाबी परिन्दा हो गया है
वो मेरी रहगुजर का उजाला हो गया है
उसे है जब भी देखा सवेरा हो गया है
तुम्हारे बिन गुजारा हमारा हो गया है
हमें जीनें का पक्का इरादा हो गया है
यहाँ बस्ती जली थी औ' ये अख़बार चुप था
तिरा आना ख़बर में धमाका हो गया है
शराफ़त,सच व ईमां हो सीरत आदमी की
मियाँ किस वहम में हो तुम्हें क्या हो गया है
ये मौसम संगदिल है या सूरज की…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on July 5, 2014 at 11:00pm — 17 Comments
आदमी में आदमीयत है नहीं
इससे बढ़कर कोई दहशत है नहीं
रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर
इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं
बीज जो बोया वही उग पायेगा
इस जमीं की वो हकीकत है नहीं
काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ
जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं
सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा
ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं
अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे
अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं
भुवन…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on May 6, 2014 at 9:30pm — 14 Comments
दिल में उम्मीदों का चलता कारवाँ रखिये
हर अँधेरे के लिए कोई शमाँ रखिये
बज़्म में आ ही गए कुछ तो निशाँ रखिये
कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये
रोज़ का मेहमाँ कोई मेहमाँ नहीं होता
शह्र के बाहर सही अपना मकाँ रखिये
देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो
कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये
ख्वाब जब होंगे नहीं तासीर क्या होगी
ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये
तीरगी को है मिटाती एक…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on April 14, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
जां कभी ये जहान लेता है
और कभी आसमान लेता है
सब्र का इम्तेहान लेता है
हिज़्र का पल भी जान लेता है
रिंद आबे हयात पी आया
और वाइज़ बयान लेता है
लोग कहते हैं सर कटा ले तू
और वो बात मान लेता है
पैरवी कर के वो लुटेरों की
रोज मुफ़लिस की जान लेता है
लो ग़ज़ल बन गयी ये कहते हैं
जब वो कहने की ठान लेता है
वो मुझे राज़दार है कहता
और शमशीर तान लेता है
धार आ जाती है हवाओ में
ख्वाब जब भी उड़ान…
Added by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 12:00am — 10 Comments
बस्ते में रोटी भर लाया
बच्चा भी ये क्या घर लाया
होठों पे खुशियाँ धर लाया
वो बोले किसकी हर लाया
सोने चांदी सब नें मांगे
वो चिड़ियों जैसे पर लाया
इक तूफानी झोंका आया
जाने किसका छप्पर लाया
दुत्कारा लोगों नें उसको
जो धरती पे अम्बर लाया
काम के इंसा मैंने मांगे
वो बस्ती से शायर लाया
भुवन निस्तेज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by भुवन निस्तेज on March 26, 2014 at 2:30pm — 9 Comments
रह गयी कुछ है यही ग़र रह गयी
घर की अस्मत घर के बाहर रह गयी
ज़िन्दगी तक उसकी होकर रह गयी
अपने हिस्से की ये चादर रह गयी
वो मुझे बस याद आया चल दिया
शाम मेरी याद से तर रह गयी
तृप्ति ने बोला बकाया काम है
और तृष्णा घर बनाकर रह गयी
नाव जब डूबी तो बोला नाख़ुदा
थी कमी सूई बराबर रह गयी*
बन गई मेरी ग़ज़ल वो आ गया
कुछ खलिश फिर भी यहाँ पर रह गयी
भुवन निस्तेज
(मौलिक व…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on March 25, 2014 at 11:00pm — 16 Comments
अपनों नें जो मुझपर फेंका पत्थर है
वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है
दुनिया समझी थी वो कोई शायर है
जिसका दामन मेरे अश्कों से तर है
ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना
पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है
भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा
रोटी बन पाता क्या संगेमरमर है
धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या
पक्षी का तो आना जाना उड़कर है
चूल्हा जलने से रोको इस बस्ती में
इस बस्ती में आंधी आने का…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on March 19, 2014 at 2:00pm — 18 Comments
ज्यों जवां ये चांदनी होने लगी
त्यों सुबह की सुगबुगी होने लगी
जब समंदर सी नदी होने लगी
साहिलों सी ज़िन्दगी होने लगी
आदमी में हो न हो रूहानियत
आदमीयत लाज़मी होने लगी
तितलियों को मिल गयी जब से भनक
बाग़ में कुछ सनसनी होने लगी
यार ने आदी बनाया इस क़दर
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी
आँधियों से रूह कांपी रेत की
पर्वतों में दिल्लगी होने लगी
फिर मुसाफ़िर रासता मंजिल…
Added by भुवन निस्तेज on March 14, 2014 at 9:30pm — 8 Comments
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