For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज्यों जवां ये चांदनी होने लगी

त्यों सुबह की सुगबुगी होने लगी

 

जब समंदर सी नदी होने लगी

साहिलों सी ज़िन्दगी होने लगी

 

आदमी में हो न हो रूहानियत

आदमीयत लाज़मी होने लगी

 

तितलियों को मिल गयी जब से भनक

बाग़ में कुछ सनसनी होने लगी

 

यार ने आदी बनाया इस क़दर

हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी

 

आँधियों से रूह कांपी रेत की

पर्वतों में दिल्लगी होने लगी

 

फिर मुसाफ़िर रासता मंजिल वही

और कहानी फिर वही होने लगी

 

ख़्वाब नें इतना सताया है हमें

ज़िन्दगी खुद ख़्वाब सी होने लगी

 

जो स्वयं निस्तेज है वो क्या कहें

क्यों उजालों में कमी होने लगी

 

सैकड़ो पर्दों में है ज़म्हुरियत

अब इसी को बेबसी होने लगी

भुवन निस्तेज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 502

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on September 4, 2014 at 11:03pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहब काफ्ये पर पुनर्विचार हो चूका है, सादर....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 8:41pm

आदरणीय भुवन निस्तेजजी, आपकी ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई. अच्छी ग़ज़ल हुई है.

हाँ, एक बात, क़ाफ़िया गलत निर्धारित हुआ है.

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 17, 2014 at 11:43pm

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय भुवन जी

जो स्वयं निस्तेज है वो क्या कहें

क्यों उजालों में कमी होने लगी.............बहुत खूब , हार्दिक  बधाई

 

Comment by मोहन बेगोवाल on March 16, 2014 at 9:37pm
भुवन जी , अप जी की गज़ल बहुत उम्दा हे मुबारकबाद
Comment by भुवन निस्तेज on March 15, 2014 at 4:26pm

गिरिराज भण्डारी जी, अनुराग अनुभव जी व गुमनाम पिथोरागढ़ी जी बहुत बहुत अभार आप लोगों का, तकनीकी मंच पर नया हूँ, कृपया मार्गदर्शन करें...

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 15, 2014 at 10:43am

khoob bhaai  ji gazal achchhi lagi badhai...............................................

Comment by Anurag Anubhav on March 15, 2014 at 8:27am
आदरणीय भुवन जी.... बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.... बधाई स्वीकार करें....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 14, 2014 at 11:36pm

आदरणीय भुवन भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service