अपनों नें जो मुझपर फेंका पत्थर है
वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है
दुनिया समझी थी वो कोई शायर है
जिसका दामन मेरे अश्कों से तर है
ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना
पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है
भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा
रोटी बन पाता क्या संगेमरमर है
धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या
पक्षी का तो आना जाना उड़कर है
चूल्हा जलने से रोको इस बस्ती में
इस बस्ती में आंधी आने का डर है
दुःख रेतीले पर्वत सा ढह जायेगा
अपना दिल भी तो तूफानों का घर है
भुवन निस्तेज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, मतले के उला में सामान्य परिवर्तन करने की कोशिश की है कृपया गौर फरमाये ...
यह पहले यूँ था
अपने पथ में जो धारिला पत्थर है
वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है
इसे अब
अपनों नें जो मुझपर फेंका पत्थर है
वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है
कर दिया है, कृपया इस पर अपनी राय देकर कृतार्थ करें....
आदरणीय वीनस केसरी जी इस समीक्षा के लिए विशेष आभार, मैंने इस ग़ज़ल में २२२२ २२२२ २२२ मात्रा ली हैऔर इसका पालन मतले में भी किया है, मैं दुविधा में पड़ गया हूँ, कृपया मार्गदर्शन करें ............सादर..
आदरणीय बृजेश नीरज जी इस ग़ज़ल पर मैंने २२२२ २२२२ २२२ की मात्रा ली है...सादर
आदरणीय shashi purwar, annapurna bajpai, coontee mukerji, Dr.Prachi Singh इस रचना पर दृष्टि डालने के लिए ह्रदय से आभारी हूँ...
आदरणीय Shyam Narain Verma, गिरिराज भंडारी, Omprakash Kshatriya स्नेह के लिए आभार....
अाँखिर इस मर्ज की दवा क्या है ?
.........
/भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा / या
/पक्षी का तो आना जाना उड़कर है/
गजल के किसी मिसरे काे देखें ताे २२ २२ २२ २२ २२२ या २२२२ २२२२ २२२ एेसी संरचना नजर अाती है । इस प्रकार गिन्ती करने पर मतले पर क्या दाेष है मैं समझ नहीं सका , कृपया क्षमा करें । हाँ हुस्ने मतला में 'दुनिया' शब्द काे २२ के रुप में प्रयाेग किया है जाे स्वीकार्य है या नहीं तथा तीसरे शेर में 'एे खुशियाें तुम' काे २२ २२ के रुप में लिखा जा सकता है या नहीं ? यह प्रश्न विचारणीय है । अन्तिम शेर में रदीफ 'हैं'बहुवचन में हाेने से दाेषपूर्ण माना जाएगा ।
मेरी अल्पबुद्धि से इतना ही समझ सका । अग्रजाें से निवेदन है कि हम पाठकाें का मार्ग दर्शन करने की कृपा करें ।
ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना
पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है
भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा
रोटी बन पाता क्या संगेमरमर है
धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या
पक्षी का तो आना जाना उड़कर है
उपरोक्त अशआर इस मंच के लिए उपलब्धि हैं आदरणीय भुवनजी. दिल से दाद कुूल करें.
वैसे इस मात्रिक ग़ज़ल के मतले का उला (पहली पंक्ति) बह्र में कैसे हआ, समझ नहीं पाया.
सादर
धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या
पक्षी का तो आना जाना उड़कर है...............वाह बहुत सुन्दर
बधाई स्वीकारें
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ... हर शेर के लिए ढेरो दाद
तेवरदार अशआर अलग ही लुत्फ़ दे रहे हैं ...
बहर के हवाले से मतले पर फिर से गौर फरमाएं
ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना
पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है
.............................
चूल्हा जलने से रोको इस बस्ती में
इस बस्ती में आंधी आने का डर है
क्या बात ! भुवन जी बधाइ हाे ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online