For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये

दिल में उम्मीदों का चलता कारवाँ रखिये

हर अँधेरे के लिए कोई शमाँ रखिये

 

बज़्म में आ ही गए कुछ तो निशाँ रखिये

कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये

 

रोज़ का मेहमाँ कोई मेहमाँ नहीं होता

शह्र के बाहर सही अपना मकाँ रखिये

 

देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो

कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये

 

ख्वाब जब होंगे नहीं तासीर क्या होगी  

ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये

 

तीरगी को है मिटाती एक चिंगारी

हिज्र के आलम में भी वस्ले-गुमाँ रखिये

 

कब नजाने खुदकुशी ये गाँव कर लेगा

शह्र की ख़ुदग़र्ज़ियाँ गर दरमियाँ रखिये

 

अब भला सैयाद का डर क्यों रहे उनको   

यूँ अगर ‘निस्तेज’ अपना पासबाँ रखिये

 

घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा

शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये

भुवन निस्तेज 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on May 14, 2014 at 9:42pm

आदरणीय  Mukesh Verma "Chiragh" जी सुझाव के लिए आप्लोगों क हार्दिक आभार, मतले में सामान्य बदलाव किया है, सादर...

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 10:00pm

आदरणीय भुवन जी
जितनी भी तारीफ की जाए कम है..बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने. मुबारकबाद क़ुबूल करें
शिज़्जू जी की बात मुझे भी सही लगती है. उर्दू में चंद्र बिंदु यहाँ क़ुबूल नहीं है.

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:16am

आ. कृष्ण सिंह पेला जी सादर धन्यवाद...

आ. vijay nikore जी धन्यवाद...

आ. गुमनाम पिथौरागढ़ी साहब बहुत बहुत धन्यवाद...

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:13am

आदरणीय शकील जम्शेद्पुरी जी हार्दिक आभार...

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:12am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपके  स्नेह के लिए सदैव आभारी हूँ, कृपया त्रुटियाँ हो तो बेझिझक फटकार लगा दें...

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 16, 2014 at 5:07pm

देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो

कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये

कब नजाने खुदकुशी ये गाँव कर लेगा

शह्र की ख़ुदग़र्ज़ियाँ गर दरमियाँ रखिये

घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा

शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये

बहुत खूब  बधाई स्वीकार करें

Comment by vijay nikore on April 16, 2014 at 4:07pm

बहुत खूब गज़ल कही है। बधाई।

Comment by Krishnasingh Pela on April 15, 2014 at 11:29pm

... कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये 

वाह क्या बात भुवन निस्तेज जी । जरुर अाप का अंदाज ए बयाँ कुछ अलग ही है ।ग़ज़ल की जितनी भी तारीफ  की जाये कम है । 

...कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये

...ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये । 

एेसे एेसे सानी हैं जिनका काेई सानी नहीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 15, 2014 at 6:06pm

आदरनीय भुवन भाई , लाजवाब गज़ल कही अहि , दिली बधाई स्वीकार करें ॥

घर की बातें घर में ही रह जाये है अच्छा

शह्र के अख़बार को मत हमजुबाँ रखिये -    बहुत खूब , भाई , बधाई !!

Comment by शकील समर on April 15, 2014 at 4:14pm

पढ़कर आनंद आ गया आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
2 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service