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ग़ज़ल :अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

आदमी में आदमीयत है नहीं

इससे बढ़कर  कोई दहशत है नहीं

 

रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर

इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं

 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं

 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

भुवन निस्तेज

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by भुवन निस्तेज on May 16, 2014 at 12:05am

सम्पूर्ण सुधिजनों को सुझावों के लिए धन्यवाद, मतले पर ध्यान नहीं दे पाया था, इसपर शर्मिन्दा हूँ, आदरणीय कृष्ण सिंह पेला जी के सुझावानुसार मतला परिवर्तित कर दिया है, जहाँ तक बह्र का सवाल है, इसमें २१२२ २१२२ २१२ अरकान लिए हैं, कोई त्रुटी रही हो तो सुझाए... आभार...

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 1:41pm

भुवन भाई आपकी ग़ज़ल में काफिया कहाँ है मतले की तक्तीअ पुनः कर लीजिये साथ ही साथ बह्र भी देख लीजिये मतला बह्र में नहीं है.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 8:42am

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं...........वाह! क्या बात कही है

 

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं.............बहुत खूब

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय भुवन जी, दिली बधाइयाँ स्वीकार करें

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 10, 2014 at 11:47pm

खूबसूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाई...

काफिया dekh len sir

Comment by नादिर ख़ान on May 10, 2014 at 4:29pm

आदरणीय भुवन जी उम्दा कोशिश के लिए आपको बहुत बहुत बधाई....

काफिये को लेकर  थोड़ा संदेह है हमारे मन मे, क्योंकि आपने मतले में काफिया आदमियत और तबीयत  लिया है तो उसे आगे भी मेंटेन किया जाना था । बाकी सुधिजन ज्यादा प्रकाश डालेंगे ।

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2014 at 7:13pm

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा
ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं .... बहुत खूब … हार्दिक बधाई आदरणीय भुवन निस्तेज ज़ी

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 9, 2014 at 11:57am

आदरणीय भुवन जी
अच्छी ग़ज़ल पर बहुत बहुत मुबारकबाद

Comment by Krishnasingh Pela on May 9, 2014 at 9:00am

वाह अा.भुवन जी क्या बात है ! लाजबाब अश'अार हैं । 

बीज जो बोया वही उग पायेगा

इस जमीं की वो हकीकत  है नहीं (हकीकत अब खाेती जा रही है)

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं  (बहुत खूब एहसास ।) 

काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ

जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं (इस पर थाेडा सा गाैर फरमाएंगे क्या )

Comment by Savitri Rathore on May 8, 2014 at 11:31pm

सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा

ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं

 

अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे

अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं

वाह.……बहुत खूब !


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 7, 2014 at 9:21pm

अच्छे भाव हैं आदरणीय भुवन जी हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

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