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ग़ज़ल: हवा का शौक जब पर कुतरना हो गया है

हवा का शौक जब पर कुतरना हो गया है

तभी से इंकलाबी परिन्दा हो गया है

 

वो मेरी रहगुजर का उजाला हो गया है

उसे है जब भी देखा सवेरा हो गया है

 

तुम्हारे बिन गुजारा हमारा हो गया है

हमें जीनें का पक्का इरादा हो गया है

 

यहाँ बस्ती जली थी औ' ये अख़बार चुप था

तिरा आना ख़बर में धमाका हो गया है

 

शराफ़त,सच व ईमां हो सीरत आदमी की

मियाँ किस वहम में हो तुम्हें क्या हो गया है

 

ये मौसम संगदिल है या सूरज की है साजिश

पिघलकर आज शबनम कुहासा हो गया है

 

कोई कब है टिका जब भी आया दौरे तूफाँ

मदारी था जो कल तक जमूरा हो गया है

मौलिक वा अप्रकाशित 

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Comment by भुवन निस्तेज on September 17, 2014 at 8:07pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय साहब बेहद शुक्रिया... मई कोशिस करूँगा की क्रिया परिवर्तित करूँ,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 2:31am

एक सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय भुवन भाईजी.
बहुत अच्छी ग़ज़ल से आपने प्रसन्न किया है. 

अलबत्ता, वो छींका और खबर में धमाका हो गया है .. जैसे मिसरे ग़ज़ल के लिहाज से सधे नहीं कहे जा सकते. ऐसा मेरा मानना है. छींकना जैसी क्रिया आपकी ग़ज़ल में जाने क्यों अटपटी लगी.
अन्यथा अन्य शेर बेहतर हुए हैं
दिल से दाद कुबूल कीजिये

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 6:07pm

आदरणीय गुमनाम पिथोरागढ़ी भाई धन्यवाद....

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 6:06pm

आदरणीय शिज्जु शकूर साहब हार्दिक धन्यवाद....

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 6:05pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी साहब धन्यवाद. इस पर मैंने  १२२ २१२२ १२२ २१२२(

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 6:02pm

आदरणीय  Ravi Prabhakar भाई, आपको मजा आ गया तो समझिये हमारी कोशिश कामयाब रही,कृपया स्नेह बनाये रक्खे...सादर..

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 6:00pm

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra साहब आपकी नज़र पड़ते ही पत्थर पारस बन गया.....सादर..

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 5:59pm

आदरणीय  अरुन शर्मा 'अनन्त भाई आपको ढेरों धन्यवाद, यह एहसास मुझे भी हो रहा था की ग़ज़ल पक नहीं रही, जब प्रयास कर हारा तो इसे मंच के हवाले कर दिया ताकि इस पर यहीं चर्चा हो पाए, पर दुर्भाग्य देखिये की कई दिनों से ऑफलाइन था....सादर

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 5:55pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब, हौसला आफज़ाई के लिए शुक्रिया...

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 9, 2014 at 7:25am

सुदर  गजल हुई  है  बधाई ।...........................i

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