मौसम हुआ सुहावना ,उपवन उपवन नूर
ग्लोबल वार्मिंग का असर अब गर्मी है दूर |
समझो प्यारे ध्यान से मौसमी यह बिसात
सुबह होती धूप अगर शाम हुई बरसात |
पारा बढ़ता जा रहा लेकिन बढ़ी न प्यास
फागुन के अब मास में श्रावण का अहसास |
फागुन बीता ओढ़ के रजाई और शाल
वोटर का पारा बढ़ा देख सियासी चाल |
मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल
सेहत के खजाने को रखना सब संभाल |
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...........मौलिक व अप्रकाशित...............
Comment
आदरणीया, आपको दोहे कहते एक अरसा हो गया है. आपका प्रयास अच्छा भी लगता है. लेकिन मेरा यह भी कहना है कि दोहा छंद पर प्रस्तुत हुआ आलेख काश आपने पढ़ लिया होता. अन्यथा, निम्नखित शब्द-संयोजन अपने-अपने चरणों में न होते -
मौसमी यह बिसात -- सम चरण में
रजाई और शाल - सम चरण में
सेहत के खजाने को - विषम चरण में
बहरहाल, इस प्रस्तुति पर आपको मेरी हार्दिक बधाइयाँ.
आदरणीय सरिता जी , बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आपने , आपको दिली बधाइयाँ ॥ पमिय्पं के विषय मे आ. गणेश भाई , आदरणीया कल्पना जी ने जो सलाह दी है उसपे ज़रूर ध्यान दीजियेगा ॥
आदरणीया दी बहुत खूब मुझे भी इसमें ज्यादा बाधा लग रही थी उन दोहों की बजाय
आदरणीय आशुतोष जी हार्दिक आभार
सरिता जी सब दोहे अच्छे लगे, बहुत बहुत बधाई। गलतियों की ओर आ॰ गणेश जी इशारा कर दिया है, मुझे इस दोहे में भी लय कुछ बाधित लग रही है।
समझो प्यारे ध्यान से मौसमी यह बिसात
सुबह होती धूप अगर शाम हुई बरसात |
इसे इस तरह कहें तो ....
समझो प्यारे ध्यान से, यह मौसमी बिसात
धूप अगर होती सुबह, शाम हुई बरसात |
आदरणीया सरिता जी ..सभी दोहे मन को छू लेने वाले हैं ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर
आदरणीय बागी जी हार्दिक आभार आपके अमूल्य मार्गदर्शन के लिए
इन्हें इस तरह सुधारा जा सकता है कृपया मार्गदर्शन करें
फागुन बीता ओढ़ के रजाई संग शाल /फागुन बीता पहन के गर्म वस्त्र औ शाल
वोटर का पारा चढ़ा देख सियासी चाल |
मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल
खजाना सब सेहत का रखो जरा संभाल |
आदरणीय शिज्जू जी हार्दिक आभार मार्गदर्शन के लिए
सभी दोहे अच्छे लगें, इन दो दोहो पर ध्यान चाहूँगा, जहाँ प्रवाह बाधित है,
फागुन बीता ओढ़ के रजाई और शाल
वोटर का पारा बढ़ा देख सियासी चाल |
मौसम का बदलाव ये कर ना दे बेहाल
सेहत के खजाने को रखना सब संभाल |
बधाई प्रेषित है इस प्रस्तुति पर.
आदरणीया सरिता जी मौसम का बहुत बढ़िया चित्रण आपने किया है बहुत बहुत बधाई।
शिल्प की बात कहूँ तो कहीं कहीं प्रवाह बाधित है ज़रा ग़ौर फरमा लें।
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