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ग़ज़ल- सारथी || न सोना न चांदी न धन ले गई ||

न सोना न चांदी न धन ले गई 

मुहब्बत मेरी बांकपन ले गई/१  

हजारों फ़रिश्ते गये हारकर 

मेरी जान तो गुलबदन ले गई/२  

नई ताजगी है नई सुब्ह है 

चलो! मौत मेरी थकन ले गई/३ 

न मशहूर होना खुदा के लिए 

समंदर नदी की उफन ले गई/४  

चलो बेच आएं बची रूह को  

गरीबी हमारे बदन ले गई/५ 

न ताक़त रही ज़ोश भी कम गया

शिकस्ते वफ़ा सब अगन ले गई/६ 

लिबासें चमकती रहे इसलिए 

सियासत शहीदी कफन ले गई/७ 

थका पर-कटा सा गया शाम को 

हंसी बुलबुलों की चुभन ले गई/८    

हुनर को सभी से छुपाकर रखा 

इलाही उसे भी सुखन ले गई/९  

 

.....................................................

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित  

अरकान: १२२ १२२ १२२ १२  

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Comment

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Comment by S. C. Brahmachari on April 4, 2014 at 9:05pm

न सोना न चांदी न धन ले गयी , मुहब्बत मेरी बाँकपन ले गयी । --- बहूत खूब , बधाई स्वीकार करें !

Comment by Saarthi Baidyanath on April 4, 2014 at 2:45pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी , आप गुरु श्रेणी में हैं .... अनुज समझ सिखलाते रहिएगा ! मंच पर बहुत विद्वान मनीषी हैं ..जब सबका आशीष मिलता है ..ह्रदय प्रफुल्लित हो जाता है ! मैं इस पर , हमेशा सीखने के एकमात्र उद्देश्य से आता हूँ ..और सदैव सफल भी होता  हूँ आप सब के स्नेह से, आशीर्वचन से  ! 

सादर प्रणाम सहित :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2014 at 2:34pm

आ. बैद्य नाथ भाई , आपका नाम गज़ल लिख जाने को भी जिस सरलता से स्वीकर किया , मै उस सरलता और आत्मीयता के सामने नत हूँ , और इसी लिये आपके नाम को सुधार भी नही रहा हूँ ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥ आगे ज़रूर ख्याल रखूंगा ॥

Comment by Saarthi Baidyanath on April 4, 2014 at 1:09pm

आदरणीय  धर्मेन्द्र कुमार सिंह  जी , बहुत बहुत धन्यवाद प्रोत्साहन हेतु ! सादर प्रणाम कर रहा हूँ ! आपका सुझाव विचारणीय है ....विनीत :)

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 4, 2014 at 11:12am

अच्छे अश’आर हुए हैं सारथी साहब। दाद कुबूल करें

‘मुहब्बत मेरी बांकपन ले गई’ में मेरी के स्थान पर मेरा करने पर विचार करें

Comment by Saarthi Baidyanath on April 3, 2014 at 8:44pm
मान्यवर, गिरिराज भंडारी जी , बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सादर प्रणाम ! वैसे रामनाथ जी हमारे सहोदर हैं, और जुड़वाँ भी ! आपका आशीर्वाद दोनों को मिल ही जायेगा ...किसी न किसी तरह ! स्नेह देते रहिएगा ! विनीत :)

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:55pm

आदरणीय राम नाथ भाई , एक खूब सूरत कामयाब गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ सभी शे र बहुत पसन्द आये भाई , हर शे र के लिये अलग अलग दाद कुबूल करें ॥

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