कभी जिस जगह हम मिले थे
जहाँ फूल मुहब्बत के खिले थे
मैं आज भी खड़ा हूँ उसी मोड़ पर
जहाँ तुम गये थे मुझे छोडकर
हँसी से कोई ऱिश्ता नहीं है
खुशी से दूर तक वास्ता नहीं है
जमाने की कितनी परवाह थी मुझे
अब जमाने की भी कोई परवाह नहीं है
गुजरते हैं लोग इस चौरेहे से
तेरी चर्चा करते हुये
मैंने बहुत को देखा है
तेरे लिये आह भरते हुये
लेकिन उनकी आह भरने पर
मुझे तरस जरूर आता है
किआज भी हर कोई शख्स
तुझे पहचान नहीं पाता है
तेरे लुटे हुये को
मैं कुछ आसरा देता हूँ
इसी बहाने आज भी
तेरा हाल जान लेता हूँ
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
गुजरती है पास से
खुशबु से पहचान लेता हूॅु
बैठ कर कभी दर्द बाटा करते थे
आज दर्द को पी जाता हॅू
एक दम मित्र दिल की बात आपने लिख दिया बधाई हो आपको
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ......................... |
कभी जिस जगह हम मिले थे
जहाँ फूल मुहब्बत के खिले थे
मैं आज भी खड़ा हूँ उसी मोड़ पर
जहाँ तुम गये थे मुझे छोडकर.....इंसान के जीवन में कभी कभी ऐसा मोड़ आता है कि लगता है वक्त थम सा गया है.बहुत सुंदर रचना. हार्दिक बधाई.
shukriya Meena pathak ji
बहुत सुन्दर ,, बधाई आप को | सादर
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