1212 2212 22 1212
भले नहीं रिश्ता तेरा अब मेरे हाल से
निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से
फकीर जैसा हो गया हूँ तेरे इश्क में
बचा नहीं अब तक कोई भी हुस्न जाल से
कोई नहीं क्या हद कोई इस इन्तजार की
गुजर रहे है दिन महीने जैसे साल से
रकीब की महफिल को जब तूने सजा दिया
तो हो गया सबको अचम्भा इस कमाल से
कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में
जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया मीना जी
शुक्रिया महिमा जी
अति सुन्दर .... बधाई
behad umda prstuti bdhai aapko saadar
शुक्रिया शिज्जू शंकर जी
बड़े उम्दा खयालात हैं आदरणीय उमेश जी बहुत बहुत बधाई आपको
शुक्रिया अरुन कुमार जी
शुक्रिया कुन्ती मुकर्जी जी
कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में
जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से.....बहुत खूब.....हार्दिक बधाई.
कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में
जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से
उम्दा गज़ल के लिए बधाई.............
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