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हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा
दब गई फिर सदा वहीं यारो
काफिले रौशनी के दूर हुए
छुप गया चाँद भी कहीं यारो
दिल सुलगता है मेरा रह-रह के
बैठे चुपचाप हमनशीं यारो
आबले पड़ गये हैं पैरों में
गर्म होने लगी ज़मीं यारो
आइने का बिगड़ता क्या लेकिन
तर हुई खूँ से ये ज़बीं यारो
मेरा महबूब बनके इस ग़म ने
हैं भिगोए ये आस्तीं यारो
आबले = छाले
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा
दब गई फिर सदा वहीं यारो ------------ बहुत खूब , आदरणीय शिज्जु भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है ॥ दाद कुबूल करें ॥
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