For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“ अरे! बेटा..तैयार हो रहे हो. अगर बाहर तक  जा रहे हो तो अपने पिता कि दवाई ले आओ, कल कि ख़त्म हुई है”

“ अरे! यार मम्मी!!   मैं जब भी बाहर निकलता हूँ , आप टोंक देती हो. आपको  पता है न, हमारी पूरी एन.जी.ओ. की टीम पिछले हफ्ते से गरीब और असहाय लोगों कि सहायता के लिए गाँव-गाँव घूम रही है. शायद ! आप जानती  नही हो, अभी  मेरी  सबसे बढ़िया प्रोग्रेस  है पूरी टीम में ”

 

        

जितेन्द्र ‘गीत’

 (मौलिक व् अप्रकाशित)    

Views: 735

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 11:28am

आदरणीय शुभ्रांशु जी, आजकल इसे ही परोपकार कहा जाता है. अपने माता-पिता को माँ-बाप नही कहा जाता...हाँ..! दूसरों को अंकल-आंटी जरुर कहा जाता है..हा हा हा :)))

आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभार ..सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on July 29, 2014 at 10:39am

आदरणीय जितेंद्र जी, 

परोपकारी. हा हा हा..

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 10:18am

आप सही कह रहें है आदरणीय डा.आशुतोष जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 10:16am

आपकी सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार ,आदरणीय श्याम नारायण जी

सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2014 at 3:58pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ..सचमुच तरक्की ने इंसान को एक मशीन बना दिया ..कोई जज्वात नहीं कोई अपना नहीं ..दिशा हीन यात्रा ..गागर में सागर जैसे इस रचना के लिए आपको ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on July 28, 2014 at 1:06pm
बेहतरीन लघुकथा,,बधाई आपको,,,
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 28, 2014 at 12:38pm

जी आदरणीय गिरिराज जी, आप सही कह रहे है. बहुत आतुरता सी है जल्द ही सब कुछ पाने की. आपकी सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ .

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2014 at 11:47am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आज के युवाओं की ये एक व्यवहारिक सच्चाई है , कम समय मे सब कुछ पा लेने  की महत्वाकांक्षा से  की उपज है ये ! सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 9:59pm

आपके आशीर्वाद से रचना धन्य हुई आदरणीय विजय जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 27, 2014 at 9:57pm

आपके विचारों से सहमत हूँ आदरणीय आदित्य जी, आपका हार्दिक आभार

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service