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ख़त आता था ख़त जाता था
बहुत अनकही कह जाता था
 
बूढ़े बरगद की छाया में 
पूरा कुनबा रह जाता था
 
झगडा मनमुटाव ताने सब 
इक आंसू में बह जाता था
 
कहे सुने को कौन पालता
जो कहना हो कह जाता था
 
तन की मन की सब बीमारी 
माँ का आँचल सह जाता था
 
कई दिनों का बोल अबोला 
मुस्काते ही ढह जाता था
 
लाख अभावों के जीवन में
भाव सदा ही बच जाता था  

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Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 28, 2011 at 11:43pm

GANESH JI ABHAAR


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 28, 2011 at 7:47pm
तन की मन की सब बीमारी 
माँ का आँचल सह जाता था
वाह वाह साहब क्या बात कही है , सब बिमारी माँ का आँचल सह जाता था , माँ ऐसी ही होती है , सबकुछ समेट लेती है अपने में ,
बेहतर ग़ज़ल पर दाद कुबूल कीजिये श्रीमान |
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 27, 2011 at 11:06pm
ABHAAR RASHMI PRABHA JI
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 27, 2011 at 11:06pm

ABHAAR VANDANA JI

Comment by rashmi prabha on February 27, 2011 at 3:40pm
बूढ़े बरगद की छाया में 
पूरा कुनबा रह जाता था
कितनी आत्मीयता है इन पंक्तियों में 

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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