सूरज के विरुद्ध
षड्यंत्र रच
आततायी कोहरे को
निमंत्रण किस ने दिया
कोई नहीं जानता
ठण्ड खाया क़स्बा
पथरा गया है
हरारत महसूस होती है
ज्वर हो तो ही
अलाव तापते लोग
दिखाई नहीं देते
बस खांसते,खंखारते हैं
बंद कमरों में
सक्षम आदेश बिना ही
अनधिकृत कर्फ्यू
जारी हो गया
कस्बे में
जमाव बिंदु से नीचे पहुंचे
पारे ने
नलों का पानी…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 26, 2011 at 8:46am —
6 Comments
जब कभी भी आजमाया जायेगा
आदमी औकात पर आ जायेगा
शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला
वो यकीनन बुत बनाया जायेगा
क़ैद कर मेरी सहर की रोशनी
भोर का तारा दिखाया जायेगा
जिद पे गर बच्चा कोई आ ही गया
चाँद थाली में सजाया जायेगा
गर वो वादों पर यकीं करने लगे
उस से रोज़ी पर न जाया जायेगा
फ़र्ज़दारी का सिला जो दे चुके
कत्लगाहों में बसाया जायेगा
ये जहां तो इक मुसलसल मांग…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 8, 2011 at 11:00am —
7 Comments
रस्ते रस्ते बात मिली
नुक्कड़ नुक्कड़ घात मिली
चिंदी चिंदी दिन पाए है
क़तरा क़तरा रात मिली
सिला करोड़ योनियों का है
ये मानुष की जात मिली
बादल लुका-छिपी करते थे
कभी कभी बरसात मिली
चाहा एक समंदर पाना
क़तरों की औकात मिली
जीवन को जीना चाहा पर
सपनों की…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 23, 2011 at 11:30am —
3 Comments
आसमां बिजलियों से जो डर जायेगा
फिर ये भोलू का बेटा किधर जायेगा
नींद में करवटें जुर्म ऐलानिया
जुर्म किस ने किया किस के सर जायेगा
जो बताया सलीके में क्या खामियां
एक अहसान सर से उतर जायेगा
ज्ञान पच ना सका वो करे उलटियाँ
जैसे बू से ये गुलशन संवर जायेगा
गालियाँ, प्यालियाँ,कुछ बहस,साजिशें
गर ये सब ना मिला वो…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 19, 2011 at 11:00pm —
No Comments
फ़िक्रमंदों का अज़ब दस्तूर है
ज़िक्र हो बस फिक्र का मंज़ूर है
जो कभी इक शे'र कह पाया नहीं
वो मयारी हो गया मशहूर है
जो किसी परचम तले आया नहीं
वो नहीं आदम भले मजबूर है
मोड़ औ नुक्कड़ ज़हां के देख लो
ये कंगूरा तो बहुत मगरूर है
चन्द साँसों का सिला जो ये मिला
चौखटों की शान का मशकूर है
ये कसीदे शान में किस की…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 15, 2011 at 1:30am —
9 Comments
जो कहा,वो,कह न पाया हो गया
शब्द का सब अर्थ जाया हो गया
आदमी अब इक अज़ब सी शै बना
आज अपना कल पराया हो गया
बाप उस दिन दो गुना ऊंचा हुआ
जब कभी बेटा सवाया हो गया
ज़िन्दगी दी और सिक्के पा लिए
सब कमाया बिन कमाया हो गया
जब दिमागों की सड़न देखी गयी
आसमां तक बजबजाया हो गया
कल नये रंगरूट सा भर्ती हुआ
चार दिन…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 6:00am —
5 Comments
जब से कॉलोनी मुहल्ले हो गये
लोग सब लगभग इकल्ले हो गये
दोस्ती हम ने इबादत मान ली
बस कई इल्ज़ाम पल्ले हो गये
भोक्ता,कर्त्ता सुना भगवान है
लोग महफ़िल के निठल्ले हो गये
ज़िक्र की पोशीदगी बढ़ने लगी
बात में बातों के छल्ले हो गये
बेअदब हो चाँद फिर मंज़ूर है
अब तो सब तारे पुछल्ले हो गये
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:30am —
9 Comments
इक पल जीना इक पल मरना दिखता है
मेरा गिरना और संभलना दिखता है
इक बूढ़े चेहरे को पढ़ना आये तो
हर झुर्री में एक जमाना दिखता है
जब कोई गुलशन की बातें करता है
मुझ को बस इक नया बहाना दिखता है
एक कहानी नानी की सुन जो सोता
उसे ख्वाब में एक खज़ाना दिखता है
बिस्तर की सलवट को कितना ठीक करो
जब चादर का रंग पुराना दिखता…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 6, 2011 at 10:06am —
No Comments
बज़्म में ज़िक्र आम होता है
आदमी क्यों गुलाम होता है
जो हों पूरी तो हसरतें क्या है
यूँ ही जीवन तमाम होता है
तफसरा ज़िन्दगी पे देते हैं
जब भी हाथों में जाम होता है
वक़्त धोबी है पूरे आलम का
आदतन बेलगाम धोता है
ज़िन्दगी हार के वो कहते है
जीत का ये इनाम होता है
मुफलिसी के तमाम…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 20, 2011 at 9:30pm —
5 Comments
नफरतों से जब कोई भर जायेगा
काम कोई दहशती कर जायेगा
इक गली,इक बाग़ कोई छोड़ दो
एक बच्चा खेल कर घर जायेगा
बागबाँ को क्यों खबर होती नहीं
फूल इक अहसास है मर जायेगा
रेत के सहरा को कब मालूम है
एक बादल तर-ब-तर कर जायेगा
अब यक़ीनन राह भूलेगा कोई
जब कोई यूँ कौम को…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 9, 2011 at 10:00pm —
4 Comments
आसमां के हाथ मैले हो गये
ये महल कैसे तबेले हो गये
जो खनकते थे कभी कलदार से
अब सरे बाज़ार धेले हो गये
घूमती थी बग्घियाँ किस शान से
आजकल सड़कों पे ठेले हो गये
इस शहर में कौन बोलेगा भला
लोग ख़ामोशी के चेले हो गये
देखिये तो छक्के पंजे जब मिले
कल के नहले आज दहले हो गये
अपनी खुद्दारी…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 22, 2011 at 10:41pm —
7 Comments
होली की मुबारकबाद के साथ आप के लिए चन्द दोहे
सहजन फूला साजना,महुआ हुआ कलाल
मौसम दारु बेचता,हाल हुआ बेहाल
गेंहू गाभिन गाय सा,चना खनकते दाम
महुआ मादक हो गया,बौराया है आम
गौरी है कचनार सी,नैनों भरा उजास
पिया बसंती हो गए,आया है मधुमास
फगुनाया मौसम हुआ,अलसाया सा गात
चौराहे होने लगी तेरी मेरी बात
सतरंगी है…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 18, 2011 at 12:42pm —
4 Comments
इस का कब पक्का नाता है
मौसम है,आता, जाता है
सपनों को समझाऊँ कैसे
जब जी चाहे तू आता है
कोई नदी दीवानी होगी
तभी समंदर अपनाता है
सन्नाटा चाहे दिखता हो
एक बवंडर गहराता है
बच्चा जब सीधा बूढ़ा हो
खून रगों में जम जाता है
जिन्हें चलाना आता,उन का
खोटा सिक्का चल जाता…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 17, 2011 at 10:19pm —
1 Comment
रिश्ते सूखे फूल
गुलाबों के भूले जैसे हर्फ़ किताबों के
ये मिलना भी कोई मिलना है
इस से अच्छे दौर हिजाबों के
सीधी सच्ची बातें कौन सुने
शैदाई है लोग अजाबों के
दौर फकीरी का भी हो जाये
कब तक देखें तौर रुआबों के
ना छिपता,ना पूरा दिखता है
पीछे जाने कौन नकाबों के
कई सवारों ने ठोकर खाई
जाने…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 12, 2011 at 2:30am —
7 Comments
ज़िक्र बदरंग हर हुआ क्यूँ कर
हर ख़ुशी के लिए दुआ क्यूँ कर
नाव कागज़ की खूब तैरे है
आदमी इस तरह हुआ क्यूँ कर
आज तक धडकनों में तूफां हैं
आप ने इस क़दर छुआ क्यूँ कर
लोग चुपचाप क़त्ल देखे है
कौन पूछे कि ये हुआ क्यूँ कर
या कि राजा है या कि रंक यहाँ
ज़िन्दगी इस क़दर जुआ क्यूँ कर
मैंने रस्ते बनाये आप…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 11, 2011 at 12:00am —
6 Comments
क्या जाने
अब मेरे ज़ब्र के है क्या माने
तू कहे क्या,करे ,ये क्या जाने
आँख को मूंदना अदा गोया
पाँव छाती पे,कब हो,क्या जाने
फैलना इक नशा शहर का है
गाँव कब खो गया ये क्या जाने
मंद कंदील तुम ने बाले तो
रोशनी हो न हो ये क्या जाने
हम मुसाफिर है तो चलेंगे ही
राहे मंजिल है क्या,ये क्या…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 8, 2011 at 8:30am —
4 Comments
एक ग़ज़ल
रिरिया रहे है लोग
घिघिया रहे है लोग
उद्घोष होना चाहिए
मिमिया रहे है लोग
बेदर्द क़त्ल है ये
बतिया रहे है लोग
है वक़्त पूनियों सा
कतिया रहे है लोग
संवेदना मरी है
खिसिया रहे है लोग
धोखे की टट्टियों को
पतिया रहे है…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 5, 2011 at 10:55am —
5 Comments
कैसे किस्से सामने आने लगे
लोग कुछ बेबात शर्माने लगे
कल जिन्होंने पीठ में घोंपा छुरा
हमदर्द बन वो घाव सहलाने लगे
ये सहर चूजे सी जाये किस जगह
हर तरफ है बाज मंडराने लगे
वाल्मीकि है नहीं कोई यहाँ
क्रौंच-वध कर लोग इतराने लगे
पेट मोटे हो गए बेबात जो
भूख के वो अर्थ समझाने लगे
है…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 4, 2011 at 9:20am —
No Comments
ख़त आता था ख़त जाता था
बहुत अनकही कह जाता था
बूढ़े बरगद की छाया में
पूरा कुनबा रह जाता था
झगडा मनमुटाव ताने सब
इक आंसू में बह जाता था
कहे सुने को कौन पालता
जो कहना हो कह जाता था
तन की मन की सब बीमारी
माँ का आँचल सह जाता था
कई दिनों का बोल अबोला
मुस्काते ही ढह जाता…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 27, 2011 at 1:00pm —
5 Comments
सपने सब रंगीं ऊंची दूकानों में
सच्चाई बसती है फीके पकवानों में
हम ने तो समझा था घर के ही हम भी
गिनती करवा बैठे लेकिन मेहमानों में
बस्ती को साँपों ने सूंघा हो जैसे कि
शंखनाद जारी है लेकिन शमशानों में
ज़न्नत कि बातें अब सोचें तो क्या सोचें
रोटी तक शामिल है अपने अरमानों में
अपना ये होना भी होने में होना है
'होने' को गिनते वो अपने…
Continue
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 26, 2011 at 10:52pm —
3 Comments